Friday 22 May 2015

(1.1.4) Ved Vaakya (Quotations from Vedas) in Hindi


  Quotations from the Vedas in Hindi 
1.उन्नति उसकी होती है , जो प्रयत्नशील है। भाग्य के भरोसे बैठे रहने वाले सदा दीन - हीन ही रहेंगे।
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2.याद रखिये , यह जीवन हँसते - खेलते जीने के लिए है। चिंता , भय , शोक , क्रोध , निराशा आदि में पड़े रहना महान मूर्खता है।
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3.मनुष्य जीवन श्रेष्ठ और बड़ा बनने के लिए है। मनुष्य का यह  जीवन दिनों को व्यर्थ नष्ट  करने के लिए नहीं , वरन कुछ महान कार्य करने के लिए दिया गया है। हमें चाहिए कि सदा उन्नति और प्रगति की ओर कदम रखें , ऊँचे उठते रहें।
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4.श्रेष्ठ बनना (किसी दिशा में बडप्पन प्राप्त करना ) ही महान सौभाग्य है। जो महापुरुष बनने के लिए प्रयत्नशील हैं , वे धन्य हैं।
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5.जो तुम्हारे बराबर वाले हैं , उनसे आगे बढ़ो। श्रेष्ठों तक पहुँचो। मूर्खों से अपनी तुलना  मत करो, बुद्धिमानों का आदर्श ग्रहण करो।
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6.जिनके व्यवहार , क्रिया और संभाषण में मधुरता होती है ,उन्हें सभी स्नेह करते हैं। संसार में शुभ कर्म एवं उपकार वही करते हैं जिनका स्वभाव मधुर होता है।
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7.अपने गुप्त मन के सब दुर्भावों , मनोविकारों और कुवासनाओं को निकाल बाहर करो। बाहरी शत्रु उतनी हानि नहीं कर सकते हैं , जितनी आंतरिक शत्रु करते हैं।
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8.जो परम सुख चाहने वाला हो उसे संतोषी होना चाहिए,  क्योंकि संतोष ही समस्त सुखों का मूल है।
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9.यह संसार देवताओं का प्यारा लोक है। यहाँ भला पराजय का क्या काम?
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10.इसे अपना आदर्श वाक्य बनाओ , "मैं शक्ति केन्द्र  हूँ। जीवन में कहीं  भी मेरी पराजय नहीं हो सकती। "
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11.सदा ऊँचा उठने की बात कीजिये। नीचे गिरने की बात  कभी मत सोचिये।
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12.यह जीवन बहुमूल्य है तथा संघर्ष और निरंतर उन्नति के लिए बना है।
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13.सदैव उन्नति कीजिये। अवनति भूल कर भी मत होने दीजिये।गिराने वाले नहीं , जिंदगी को उत्तरोत्तर उठाने वाले पुष्ट विचारों और सत्कार्यों को अपनाइये।
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14.जीवन के किसी भी क्षेत्र में शिथिलता और अनुत्साह ठीक नहीं। याद रखिये , अकर्मण्यता और निराशा एक प्रकार की नास्तिकता है।
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15. इस संसार सागर में उद्योगी ही पार होते हैं। पुरुषार्थ विहीन व्यक्तियों  की नाव बीच में ही डूबती है।

16. उत्साही और आशा वादी का ही साथ दीजिये। उन कायरों को दूर रखिये जो आप को डरपोक बनाते हैं और भविष्य को निराशा जनक बनाते हैं।
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17. याद रखिये , वीर भुजाओं पर ही इस संसार  की सफलता आश्रित है।
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18. अपने पर भरोसे जैसी दूसरी कोई शक्ति नहीं है। उसे निरन्तर विकसित कीजिये।
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19.  क्या उचित है और क्या अनुचित है, यह विचार कर जरुरी कार्य पहले कीजिये। इसके लिए विशुद्ध विवेक का आश्रय ग्रहण कीजिये।
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20. धन , पद , श्री और समृद्धि की प्राप्ति न्याय पूर्ण आचरण से होती है। अधर्म से कमाया कमाया धन, कमाने वाले की इज्जत , सम्मान , यश और प्रतिष्ठा के लिए विनाशकारी होता है।
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21. पुरुषार्थी  के लिए कोई भी वस्तु अप्राप्य नहीं है।
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22. श्रेष्ठ बनना ही महान सौभाग्य है। जो महानता खोजने और महापुरुष बनने के लिये प्रयत्नशील है , वही वास्तव में धन्य है।
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23.जिसका अज्ञान दूर होगा , वही पाप से छूटेगा।पाप का प्रधान कारण आत्म ज्ञान का अभाव है।
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24 मानव स्वयं ही अपना भाग्य विधाता होता है। स्वात्मशक्ति के यथा विधि सदुपयोग से ही वह अतुल ऐश्वर्याधिकारी हो सकता है।
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25. मेरे दाहिने हाथ में पुरुषार्थ है, तो मेरे बाएँ हाथ में जय निश्चित है।
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26. देवता अथक परिश्रमी की ही सहायता करते हैं और उसे चाहते हैं जो आलसी नहीं हो।
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27.शक्तिमान शरीर में ही बलवान आत्मा निवास करती है। बलवान शरीर से समस्त धर्म- कर्म पूर्ण हो सकते हैं।
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28. अतुलित शौर्य और असीम बुद्धि धारण करो।जहाँ अदम्य साहस और दूरदर्शिता है , वहाँ  सब कुछ है। 
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