Friday 22 May 2015

(1.1.5) Bhoutik Unnati - Aadhyaatmik Unnati

Material Progress and Spiritual Progress भौतिक उन्नति तथा आध्यात्मिक उन्नति
Bhoutik aur Aadhyatmik Unnati


आज की दुनियाँ भौतिक दृष्टि  से बहुत संपन्न है। मानव ने हर क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है। उसने पृथ्वी   ही नहीं अन्य ग्रहों, उपग्रहों की जानकारी भी प्राप्त कर ली है। चिकित्सा, कृषि, यातायात,  डोर-संचार  आदि सभी क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है। आज सामान्य आर्थिक स्थिति वाले व्यक्ति को घर में जितनी सुविधाए प्राप्त है कुछ वर्षो पहले बड़े से बड़े सम्पन्न व्यक्ति को भी प्राप्त नहीं थी। सुविधा-साधनों के विकास के  लिए व्यापक प्रयास हो रहे है। फलस्वरुप सम्पन्नता व भौतिक सुख-सुविधाएं  बढ़ी हैं। 
ये सब भौतिक सुविधाएँ होते हुए भी मनुष्य बेचैन है, तनाव और अशांति का जीवन जी रहा है उसकी आत्मिक शक्ति क्षीण हो रही है। इससे लगता है कि भौतिक सुख-सुविधाए तथा संपत्ति आत्मिक शान्ति  व चैन के साधन नहीं हो सकते हैं क्योकि आत्मशान्ति खरीदने की वस्तु नहीं है। ऐसे व्यक्ति का दुखी होना संभव है जिसके पास काफी कुछ खरीदने के लिए पर्याप्त धन है। दूसरी तरफ जिसके पास धन की कमी है फिर भी उसका प्रसन्न और सुखी होना संभव है। आज सर्वाधिक धनवान देशो में लोग तुलनात्मक रूप से ज्यादा तनावग्रस्त है। पिछड़े हुए देशों  के लोगों  की अपेक्षा उन्हें जीवन का सामना करने में अधिक कठिनाई अनुभव होती है। उनके पास जो कुछ है उससे वे ऊब गए है और उन सब से बचकर किसी अन्य वस्तु की ओर भागना चाहते हैं। उनका दिशाहीन उद्देश्य है। वे बाहर से चमक-दमक वाले परन्तु आतंरिक रूप से दुखी तथा असंतुष्ट हैं । वे ऐसी वस्तु या स्थान को खोजते है जो उन्हें सुख, शान्ति और संतोष दे सके। 
परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं  है कि धन का अर्जन ही न किया जाए और भौतिक उन्नति होनी ही नहीं चाहिए। जीवन की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भौतिक उन्नति भी आवश्यक है। भारत प्राचीनकाल से ही शिल्प, कृषि, व्यापार, खगौल, औषधि निर्माण, रसायन-शास्त्र, आदि क्षेत्रों में उन्नति करता आया है। सूर्य ग्रहण तथा चन्द्र ग्रहण व अन्य ग्रहों की गतियों की गणना भारतीय मनीषियों ने वर्षो पहले ही कर ली थी जो आज के सन्दर्भ में भी सत्य है। यातायात के क्षेत्र में पुष्पक विमान तथा अस्त्र-शस्त्र के क्षेत्र में चमत्कारी आयुधों का उपयोग किया जाता रहा है।
आज के सन्दर्भ में भौतिक उन्नति की आवश्यकता और महत्त्व बहुत अधिक बढ़ गया है। पूँजी, कुशलता, श्रम एवं सहयोग के आधार पर भौतिक उन्नति की जानी चाहिए क्योकि, सुविधापूर्वक जीने के लिए  भौतिक साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है। कुछ अपवादों को छोड़कर वास्तविक धरातल पर देखे तो भूखा व्यक्ति न तो ईमानदार रह सकता है और न ही स्वस्थचित्त। इसलिए जीवन यात्रा की सुविधाएँ बढाने   के लिए भौतिक संपत्तियों का अर्जन आवश्यक है, परन्तु भौतिक उन्नति पर से आध्यात्मिक नियंत्रण उठा लिया जाए तो जो कुछ सांसारिक उन्नति होगी वह केवल मनुष्य की आपत्तियों को बढ़ाने का कारण बनेगी। 
सांसारिक संपत्तियां उपार्जित करना जिस प्रकार आवश्यक समझा जाता है उसी प्रकार आत्मिक पूँजी बढाने   का प्रयत्न भी निरंतर जारी रखना चाहिए। दोनों क्षेत्रो में साथ-साथ संतुलित विकास होगा तभी स्वस्थ उन्नति होगी व वास्तविक सुख की अनुभूति होगी। जितना प्रयत्न सांसारिक वस्तुओ से लाभ उठाने में किया जाए उतने प्रयत्न आत्मोन्नति के लिए भी किया जाना चाहिए। आत्मिक शान्ति नहीं हो तो सांसारिक भौतिक वस्तुओं से कोई वास्तविक लाभ नहीं उठाया जा सकता है। भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का समन्वय ही जीवन में सुस्थिर शान्ति की स्थापना कर सकता है। दोनों ही पक्षों का संतुलित विकास मनुष्य को पूर्णता प्रदान करता है। सामान्यतया व्यक्ति अपनी भौतिक उन्नति के लिए सम्पूर्ण शक्ति लगा देता है और असफल होने पर दुखी होता है। यह स्वाभाविक भी  है परन्तु उसे सफलता मिल भी गयी तो भी उसके जीवन में दुःख और असंतोष बने रहते हैं। इसका कारण है उसके जीवन के आध्यात्मिक पक्ष का उपेक्षित रहना क्योंकि इस पक्ष की उपेक्षा से जीवन में असंतुलन उत्पन्न होता है जो दुःख और असंतोष को जन्म देता है। दोनों पक्षों में संतुलन स्थापित करता वर्तमान युग की आवश्यकता है। 
कुछ निश्चित नियमो व संकल्पों का पालन करते हुए प्रत्येक व्यक्ति भौतिक व आध्यात्मिक क्षेत्र में समन्वय स्थापित करके उच्च लक्ष्य प्राप्त कर सकता है:- 
1. अपनी निष्ठा एवं धर्म के अनुसार प्रतिदिन अपने इष्टदेव से प्रार्थना करें। 
2. गृहस्थ धर्म का पालन करें। 
3. पारिवारिक जीवन में स्नेह  रखें। 
4. अपने व्यवसाय व कर्तव्य को निष्ठापूर्वक करें। 
5. सद् ग्रंथों का अध्ययन करें, धार्मिक चर्चा करें व सुने तथा प्रार्थना करें। 
6. मुसीबत व कष्ट के समय हिम्मत नहीं हारे, आत्मविश्वास सुदृढ़ रखें।
7. सकारात्मक सोच विकसित करें। 
8. मित्रता, सदाशयता तथा परोपकार की भावना रखें।
ये संकल्प अन्तःचेतना को उत्कृष्ट बनाते हैं। यदि व्यक्ति की चेतना निकृष्ट स्तर   की बनी रहे तो धनी व समर्थ होते हुए भी उसे निरंतर असंतोष एवं विक्षोभ की आग में जलते रहना होगा। अतः मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी सम्पदा, सबसे बड़ी सफलता उसका आत्मिक उत्कर्ष है। इसी से व्यक्ति महान बनता है। भले ही उसके पास भौतिक साधन कम हो पर उसके स्थान पर जो आत्मिक संपत्ति उसके पास संग्रहीत रहती है वह क्षणभंगुर संपत्तियों की तुलना में हजारों लाखो गुणा हर्षोल्लास, गौरव तथा वर्चस्व प्रदान करती है। ऐसा व्यक्ति  जहाँ  भी रहता है वहीं उत्कृष्ट वातावरण उत्पन्न करता  है . उसके भीतर की सुगंध चन्दन वृक्ष की तरह दूर-दूर तक फैलती है। अतः भौतिक पक्ष के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति अतिआवश्यक है।