Giridhar ki Kudaliyan in Hindi with meaning गिरिधर की कुण्डलियाँ हिंदी अर्थ सहित
गिरिधर की कुण्डलियाँ और अन्योक्तियॉ लोक की कण्ठहार है। इनमें सम्यक् जीवन - यापनके गुर , कंटकाकीर्ण जीवन - यात्राको सफल बनानेके विधि - निषेध सटीक दृष्टांतों सहित लक्षित होते हैँ । इनकी लोकनीतिपरक ये कुण्डलियाँ व्यक्तिको प्रमाद स्खलन और जगत - व्यवहार के कुचालों के विरुद्ध सावधान करती हैं और उसे सत्पथका निर्देश भी करती हैं। जीवन में क्या काम्य - अकाम्य , वांछनीय - अवांछनीय , श्रेयस्कर एव त्याज्य है; गिरिधर की कुंड़लियाँ इनकी निर्दशिका है। उदाहरणार्थ कुछ कुण्डलिया प्रस्तुत हैँ -साईं बैर न कीजिये , गुरू पंडित कवि यार।
बेटा बनिता पवरिया , यज्ञ करावनहार।
यज्ञ करावनहार राजमंत्री जो होई ।
विप्र , परोसी , वैद्य आपको तपै रसोई।
कह गिरिधर कविराय , युगनते यह चलि आई।
इन तेरह सों तरह दिये बनि आवै साईं।
अर्थ - कवि गिरिधर के अनुसार इन तेरह लोगोंसे कभी वैर नही बाँधना चाहिये - गुरु , विद्वान् , कवि , संगी - साथी , पुत्र , पत्नी , द्वारपाल , यज्ञ करानेवाला पुरोहित , राजमंत्री , ब्राह्मण , पडोसी , वैद्य और रसोई बनाने वाला।
साईं सब संसार में मतलब का व्यवहार।
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार।
तब लग ताको यार संगही संग में डोलें।
पैसा रहा न पास , यार मुख से नहिं बोलें।
कह गिरिधर कवि राय जगत यहि लेखा भाई।
बिनु बेगरजी प्रीति यार विरला कोई साईं।
अर्थ - कवि गिरिधर कहते हैं - दुनियाँ का सारा व्यवहार मतलब का है। मित्र तभी तक साथ देता है और पीछे -पीछे घूमता है, जब तक उसका मतलब सधता है। पैसा पास नहीं रहने पर वह मुँह से भी नहीं बोलता है। दुनियाँ का यही नियम है। निस्वार्थ प्रीति करने वाला तो कोई विरला ही देखा गया है।