Monday 30 November 2015

(1.1.12) Brahamakumaris Quotations in Hindi

 Brahamakumaris Quotations ब्रह्मा कुमारीज कोट्स (हिन्दी में )

(1) संतुष्टता व ख़ुशी साथ - साथ रहते हैं। इन गुणों से दूसरे ( गुण व व्यक्ति ) आपकी ओर स्वत: ही आकर्षित होंगें।
(2) जीवन एक नाटक है, यदि हम इसके कथानक को समझ लें तो सदैव प्रसन्न रह सकते हैं।

(3) यदि मैं एक क्षण खुश रहता हूँ, तो इससे मेरे अगले क्षण में भी खुश होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

(4) दुखों से भरी इस दुनियां में वास्तविक सम्पत्ति , धन नहीं, संतुष्टता है।

(5) विकट समस्याओं का आसान हल ढूंढ़ निकलना सबसे मुश्किल काम है।

(6) अगर आप हर कार्य ख़ुशी से करें तो कोई भी कार्य मुश्किल नहीं लगेगा।

(7) जो भविष्य है ,  वह अब हो रहा है, और जो अब हो रहा है वह अतीत बनता जा रहा है, तो चिंता किस लिए की जाये।

(8) यदि मैं अपने प्रयासों का फल प्राप्त करने के लिए बेचैन  हूँ, तो यह कच्चा फल खाने की इच्छा के समान है।

(9) यदि आप दूसरों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि आप वह हैं , जो कि  आप नहीं हैं, तो मूर्ख कौन बना ?

(10) सफलता मन की शीतलता से उत्पन्न होती है। ठंडा लोहा ही गर्म लोहे को काट  व मोड़  सकता है।

(11) जन्म का अंत है मृत्यु , और मृत्यु का अंत है जन्म।

(12) यदि आप को अपने ही अन्दर शांति नहीं मिल पाती,  तो भला इस विश्व में कहीं और कैसे पा  सकते हैं।

(13) जब हम क्रोध की अग्नि में जलते हैं, तो इसका धुँआ हमारी ही आँखों में जाता है।

(14) जहाँ बुद्धि प्रयोग करने की आवश्यकता है ,वहाँ  बल प्रयोग करने से कोई लाभ नहीं होता है।

(15) मूर्ख व्यक्ति कभी संतुष्ट नहीं हो सकता, जबकि बुद्धिमान व्यक्ति की सबसे बड़ी पूँजी संतुष्टता  ही है।

(16)  दूसरों की सफलता के प्रति भी उतना ही उत्साह दिखाएँ, जितना आप अपनी सफलता के प्रति दिखातें हैं।

(17) महान  कार्य करने के लिए उमंग और उत्साह को अपना साथी बनाइये।

(18) यदि हम भविष्य के बारे में भय भीत हो जायेंगें , तो वर्तमान में प्राप्त अवसरों को खो देंगे।

(19) दूसरों की गलती सहन करना एक बात है, परन्तु उन्हें माफ़ कर देना और भी महान बात है।

(20) यदि हम अपनी प्रशंसा व ख्याति सुनकर फूले नहीं समाते, तो निंदा व अपमान में भी  हम संतुलित नहीं रह सकेंगें।

(21) दो बातें हैं - कर्म तथा कर्म का प्रभाव। कर्म भले ही साधारण हो परन्तु इसका प्रभाव सकारात्मक, उत्पादक व रचनात्मक होना चाहिए।

(22) यदि मन में दृढ निश्चय व विश्वास है तो विजय निश्चित है। अगर संकल्प कमजोर है तो पराजय होगी।

(23) अपने मार्ग में आने वाले किसी भी विघ्न  से घबरायें नहीं। हर विघ्न को उन्नति की ओर ले जाने वाली सीढ़ी समझें।

(24) आपकी नियंत्रण शक्ति इतनी सशक्त होनी चाहिए कि एक समय में आप के मन में सिर्फ वही संकल्प उत्पन्न हों जो आप चाहते हैं, न अधिक, न कम।

(25)  हम सभी को समस्याओं का सामना करना पड़ता है परन्तु महत्वपूर्ण बात यह है कि हम सभी इनका सामना किस ढंग से करते हैं।

(26) जो मैं अब अनुभव कर रहा हूँ, वह अतीत का फल है, भविष्य में जो अनुभव करूँगा वह इस बात पर निर्भर करता है कि मैं अब क्या कर रहा हूँ।

(27)  कुछ लोग इसलिए परिपक्व नहीं बन पाते क्योंकि उन्हें भय होता है कि कहीं वे वृद्ध न हो जायें, और कुछ इसलिए क्योंकि वे जिम्मेदारी लेने से मना कर देते हैं।

(28) पहाड़ जैसी विपत्ति को दूर करने के लिए सिर्फ थोडा सा साहस ही पर्याप्त है।

(29) विपत्ति आने पर हिम्मत बनाये रखना ही सब से अच्छा उपाय है।

(30) जीवन में सबसे बड़ा प्रश्न है - मृत्यु। और मृत्यु का उत्तर है - जीवन।

(31) यदि आप को दूसरों की प्रतीक्षा करने की आदत है, तो आप अवश्य ही पीछे रह जायेंगें।

(32) ज्ञान सबसे बड़ा धन है। स्वयं से पूछें - " मैं कितना धनवान हूँ ? "

(33) अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से आप में अहंकार आ सकता है परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते हैं, उतनी ही नम्रता आती है।

(34) यदि आतंरिक स्थिति अशांति की होगी, तो सभी बाह्य चीजों में गड़बड़ी मालूम पड़ती है।

(35) यदि आप गलती करके स्वयं को सही सिद्ध करने का प्रयास  करते हैं तो समय आपकी मूर्खता पर हँसा करेगा।

(36) अपने सहज स्वाभाविक स्वरूप में रहिये, यह कुछ और होने का स्वांग करने से कहीं अधिक अच्छा है।

(37)यदि आप के संकल्प शुद्ध हैं, तो जो आप सोचते हैं , वह कहना तथा जो आप कहते हैं, वह करना, सरल हो जाता है।

(38) यदि आप गपोड़ शंख लोगों के साथ सहमत हो जाते हैं, तो उनकी निंदा के अगले पात्र आप ही होंगे।

(39) आप समस्या स्वरुप नहीं , समाधान स्वरूप बनो और बनाओ।

(40)जो सदा संतुष्ट है , वही सदा हर्षित एवं आकर्षण मूर्त हैं।

(41) यह संसार हार जीत का खेल है, इसे नाटक समझ कर खेलो।
oooooooo