Tuesday 30 August 2016

(3.1.31) Sapt Shloki Geeta in Hindi

Sapt Shloki Gita (hindi men)( Original text of Sapt Shloki Geeta with Hindi translation सप्त श्लोकी गीता मूल पाठ एवं हिंदी अर्थ )

(1) ओमित्ये काक्षरं ब्रह्म व्याहरन मामनुस्मरन।
य: प्रयाति त्यजन देहं स याति परमां गतिम्।। 
हिन्दी अर्थ :-  " ॐ " इस एक अक्षर रूप ब्रह्म का  उच्चारण करता हुआ और उसके अर्थस्वरूप मुझ निर्गुण ब्रह्म का चिंतन करता हुआ शरीर को त्यागकर जाता है , वह पुरुष परम गति को प्राप्त होता है। 
(2) स्थाने हृषिकेश तव प्रकीर्त्या,
जगत प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति,
सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघा:।।
हिन्दी अर्थ :- हे कृष्ण , यह योग्य ही है कि आप के नाम , गुण और प्रभाव के कीर्तन से जगत अति हर्षित हो रहा है और अनुराग को भी प्राप्त हो रहा है और भयभीत राक्षस सब दिशाओं में भाग रहे हैं तथा सब सिद्ध गणों के समुदाय आपको नमस्कार करते हैं।
(3) सर्वत:पाणिपादम तत्सर्वतोSक्षिशिरोमुखम।
     सर्वत: श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति।।
हिन्दी अर्थ :-
वह सब ओर हाथ पैर वाला , सब ओर नैत्र , सिर  और मुख वाला तथा सब ओर कान वाला है , क्योंकि वह संसार में सबको व्याप्त करके स्थित है।
(4) कविं पुराणमनुशासितारमणोरणीयांसमनुस्मरेद्य:।
सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूपमादित्यवर्णं तमस: परस्तात।।
हिंदी अर्थ :-जो पुरुष सर्वज्ञ , अनादि  , सबके नियंता (अन्तर्यामी रूप   में सब प्राणियों के शुभ और अशुभ कर्म के अनुसार शासन करने  वाला ) , सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म , सबका धारण पोषण करने वाले , अचिन्त्य स्वरुप , सूर्य के समान नित्य चेतन प्रकाश स्वरुप और अविद्या से अति परे , शुद्ध सच्चिदानंद घन परमेश्वर का स्मरण करता है, वह उस परम पुरूष परमात्मा को ही प्राप्त होता है। 
(5) उर्ध्वमूलमध:शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित।।
हिन्दी अर्थ :-
( भगवान बोले ) - आदि पुरुष परमेश्वर रूप मूल वाले और ब्रह्मा रूप मुख्य शाखा वाले जिस संसार रूप पीपल के वृक्ष को अविनाशी कहते हैं , तथा वेद जिसके पत्ते कहे गए हैं - उस संसार रूपी वृक्ष को जो पुरुष मूल सहित तत्व से जानता है , वह वेद  के तात्पर्य को जानने वाला है। ( अर्थात भगवान की योग माया से उत्पन्न हुआ यह संसार क्षण भंगुर और नाशवान है , इसके चिंतन को त्यागकर केवल परमेश्वर का ही नित्य निरंतर अनन्य प्रेम से चिन्तन करना  , वेद  के तात्पर्य को जानना  है।)
(6) सर्वस्य चाहं हृदि संनिविष्टोमत्त: स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्योवेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम।।
हिंदी अर्थ :-
मै ही सब प्राणियों के हृदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित हूँ तथा मुझ से ही स्मृति , ज्ञान और अपोहन होता है और सब वेदों द्वारा मै  ही जानने योग्य हूँ तथा वेदांत का कर्ता  और वेदों को जानने वाला भी मै ही हूँ।
(7) मन्मना भव मद्भक्तो  मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण:।।
हिंदी अर्थ :- 
हे  अर्जुन - तू  मुझमें मन वाला हो , मेरा भक्त बन , मेरा पूजन करने वाला हो , और मुझको प्रणाम कर। ऐसा करने से तू मुझे ही प्राप्त होगा ।