Tuesday 30 August 2016

(1.1.17) Subhashitani

Subhashitani /सुभाषितानि 

(१) विवेक पूर्ण कार्य का परिणाम 

सुखार्थाः सर्वभूतानां मताः सर्वाः प्रवृत्तयः। 

ज्ञाना ज्ञान विशेषातु मार्गामार्ग प्रवृत्तयः। 

अर्थ :- सभी प्राणी सुख की कामना करते हैं और उनकी मनोवृत्ति भी सुख पाने की होती है पर जो मनुष्य विवेक से युक्त होकर करने योग्य कार्य करता है , वह सुखकारी मार्ग में रहता है अर्थात सुख पाता है। तथा जो विवेकहीन होकर नहीं करने योग्य कार्य करता है वह दुःख का भागी होता है।
(२) स्वर्ग कहाँ है ?
यस्य पुत्रो वशीभूतो भार्यां छन्दानुगामी। 
विभवे यश्च संतुष्टस्तस्य स्वर्ग इहैव हि।। (चाणक्य निति २/३ )
अर्थ :- जिसका पुत्र अपने वश में हो , स्त्री आज्ञाकारिणी हो तथा जिसे अपनी उपलब्ध सम्पत्ति  पर संतोष हो , उसके लिये यहीं स्वर्ग है।
(3) दान की तीन गतियाँ 
दानं भोगो नाशस्तित्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य। 
यो न ददाति न भुंक्ते तस्य तृतीया गतिर्भवति।। (भर्तृहरि नीतिशतक )
अर्थ - दान देना, उपभोग करना और नष्ट होना - धन की ये तीन गतियाँ होती हैं। जो न तो दान देता है और न ही धन का उपभोग करता है, उसके धन की तीसरी गति होती है अर्थात वह धन नष्ट हो जाता है।