Rahim ke Dohe with Hindi Meaning / रहीम के दोहे हिंदी में
रहीम के बारे में संक्षेप में जानकारी :-
(१) रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना है।
(२) पिता का नाम - बैरम खाँ
(३) जन्म स्थान - लाहौर
(४) जन्म - सन 1556 ई.
(५) वे भारतीय संस्कृति के उपासक थे।
(६) वे अरबी,फ़ारसी, तुर्की, हिंदी और संस्कृत के विद्वान थे।
(७) रहीम के दोहे सरलता और अनुभूति की मार्मिकता के लिये प्रसिद्द हैं।
(८) रहीम के दोहों में लोक व्यवहार, नीति ,भक्ति तथा अन्य अनुभूतियों समन्वय हुआ है।
रहीम के दोहे :-
(१) बिगरी बात बनै नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय।।
भावार्थ :- कवि रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार दूध के फट जाने(ख़राब हो जाने) के कारण उसके मथने पर उससे मक्खन नहीं निकलता है। उसी प्रकार कोई बात (काम) बिगड़ जाये तो, उसे ठीक नहीं किया जा सकता चाहे कितना भी प्रयास क्यों न किया जाये।
(२) रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजै डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहाँ करै तलवारि।।
भावार्थ:- किसी बड़े व्यक्ति या ज्यादा महत्वपूर्ण वस्तु को पाकर किसी छोटे व्यक्ति या कम महत्त्वपूर्ण वस्तु का अपमान नहीं करना चाहिये। क्योंकि सभी अपनी-अपनी जगह पर महत्वपूर्ण होते हैं, जैसे सुई छोटी होती है और तलवार बड़ी होती है, परन्तु सिलाई करने के लिए सुई के स्थान पर तलवार का उपयोग नहीं किया जा सकता।
(३) रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं।
उनसे पहले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं।।
भावार्थ :- कवि रहीम कहते हैं कि किसी व्यक्ति का माँगने जाना, मरने के समान है अर्थात माँगना निम्न स्तर की बात है। परन्तु जो किसी के माँगने पर देने से मना करता है, यह बात (मना करना) उसके (मना करने वाले के) लिए माँगने से भी ज्यादा ख़राब है अर्थात माँगने से भी निम्न स्तर की बात है।
(४) बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
भावार्थ :- यदि कोई व्यक्ति अपने पद, सामाजिक स्थिति या उम्र के कारण बड़ा हो लेकिन वह समाज के लिए उपयोगी सिद्ध नहीं हो, दूसरे लोगों की सहायता नहीं करे, तो उसके बड़े होने का कोई लाभ नहीं है अर्थात उसका बड़ा होना व्यर्थ है। ऐसे व्यक्ति की तुलना कवि ने खजूर के पेड़ से की है जो बड़ा तो है, परन्तु किसी राहगीर को उसकी छाया का लाभ नहीं मिल पाता है, और उसके लम्बे होने से उसके फल भी ऊंचे लगते हैं। अर्थात खजूर के पेड़ के बड़े होने का कोई उपयोग नहीं है।
(५) रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय।।
भावार्थ :- कवि रहीम कहते हैं कि प्रेम रुपी धागे को मत तोड़ो। यदि एक बार धागा टूट जाये तो वह फिर जुड़ता नहीं है। यदि टूटे हुए धागे को जोड़ा जाये तो उसमें गाँठ लग जाती है। प्रेम भी धागे के समान है। यदि एक बार प्रेम टूट जाये ,तो उसे फिर से जोड़ने पर पहले जैसी प्रगाढ़ता नहीं आती है।
(२) पिता का नाम - बैरम खाँ
(३) जन्म स्थान - लाहौर
(४) जन्म - सन 1556 ई.
(५) वे भारतीय संस्कृति के उपासक थे।
(६) वे अरबी,फ़ारसी, तुर्की, हिंदी और संस्कृत के विद्वान थे।
(७) रहीम के दोहे सरलता और अनुभूति की मार्मिकता के लिये प्रसिद्द हैं।
(८) रहीम के दोहों में लोक व्यवहार, नीति ,भक्ति तथा अन्य अनुभूतियों समन्वय हुआ है।
रहीम के दोहे :-
(१) बिगरी बात बनै नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय।।
भावार्थ :- कवि रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार दूध के फट जाने(ख़राब हो जाने) के कारण उसके मथने पर उससे मक्खन नहीं निकलता है। उसी प्रकार कोई बात (काम) बिगड़ जाये तो, उसे ठीक नहीं किया जा सकता चाहे कितना भी प्रयास क्यों न किया जाये।
(२) रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजै डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहाँ करै तलवारि।।
भावार्थ:- किसी बड़े व्यक्ति या ज्यादा महत्वपूर्ण वस्तु को पाकर किसी छोटे व्यक्ति या कम महत्त्वपूर्ण वस्तु का अपमान नहीं करना चाहिये। क्योंकि सभी अपनी-अपनी जगह पर महत्वपूर्ण होते हैं, जैसे सुई छोटी होती है और तलवार बड़ी होती है, परन्तु सिलाई करने के लिए सुई के स्थान पर तलवार का उपयोग नहीं किया जा सकता।
(३) रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं।
उनसे पहले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं।।
भावार्थ :- कवि रहीम कहते हैं कि किसी व्यक्ति का माँगने जाना, मरने के समान है अर्थात माँगना निम्न स्तर की बात है। परन्तु जो किसी के माँगने पर देने से मना करता है, यह बात (मना करना) उसके (मना करने वाले के) लिए माँगने से भी ज्यादा ख़राब है अर्थात माँगने से भी निम्न स्तर की बात है।
(४) बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
भावार्थ :- यदि कोई व्यक्ति अपने पद, सामाजिक स्थिति या उम्र के कारण बड़ा हो लेकिन वह समाज के लिए उपयोगी सिद्ध नहीं हो, दूसरे लोगों की सहायता नहीं करे, तो उसके बड़े होने का कोई लाभ नहीं है अर्थात उसका बड़ा होना व्यर्थ है। ऐसे व्यक्ति की तुलना कवि ने खजूर के पेड़ से की है जो बड़ा तो है, परन्तु किसी राहगीर को उसकी छाया का लाभ नहीं मिल पाता है, और उसके लम्बे होने से उसके फल भी ऊंचे लगते हैं। अर्थात खजूर के पेड़ के बड़े होने का कोई उपयोग नहीं है।
(५) रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय।।
भावार्थ :- कवि रहीम कहते हैं कि प्रेम रुपी धागे को मत तोड़ो। यदि एक बार धागा टूट जाये तो वह फिर जुड़ता नहीं है। यदि टूटे हुए धागे को जोड़ा जाये तो उसमें गाँठ लग जाती है। प्रेम भी धागे के समान है। यदि एक बार प्रेम टूट जाये ,तो उसे फिर से जोड़ने पर पहले जैसी प्रगाढ़ता नहीं आती है।