Sunday 14 June 2020

(2.1.17) Udhyam - Purusharth

Uddhyam - Purusharth - Parishram / उद्यम - पुरुषार्थ - परिश्रम

उद्यम - पुरुषार्थ - परिश्रम
उद्यमेन हि सिध्यन्ति , कार्याणि न मनोरथैः
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखै मृगाः
अर्थात - उद्यम करने से ही कार्य पूर्ण होते है , केवल इच्छा करने से नहीं। सोये हुये शेर के मुख में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते हैं। उद्यम से ही किसी कार्य में सफलता मिलती है , न कि सफलता की कल्पना करने मात्र से। उद्यम से ही व्यक्ति सम्मान , महत्व और लक्ष्य प्राप्ति का हकदार बनता है।
परिश्र्म के बल पर ही व्यक्ति शिखर तक पहुँचता है। किसी की उन्नति या अवनति उसके परिश्रम के स्तर पर ही निर्भर करती है।
कर्मठ व्यक्ति के जीवन में उद्यम का बहुत  ऊँचा स्थान है। उद्यम या परिश्रम के बिना सफलता की कल्पना करने व्यर्थ है। - राजस्थानी भाषा में किसी कवि ने कहा है - 
राम कहे सुग्रीव नें , लंका केती दूर।
 आलसियां अलघी घणी , उद्यम हाथ हजूर।  
अर्थात -भगवान् राम ने सुग्रीव से पूछा - यहाँ से लंका कितनी  दूर है ? सुग्रीव ने उत्तर दिया - महाराज आलसी के लिए तो वह  बहुत दूर है ,परन्तु  उद्यमी के लिए मात्र एक हाथ की दूरी पर ही है ,अर्थात ज्यादा दूर नहीं है।
उद्यमी ही सब कुछ करने और पाने में समर्थ होता है। सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर अब तक जो भी विकास हुआ है ,वह किसी न किसी के परिश्रम का ही परिणाम है। परिश्रम या पुरुषार्थ से व्यक्ति का आत्म विश्वास बढ़ता है ,कुछ न कुछ नया करने की प्रेरणा मिलती है।
पुरुषार्थ से ही व्यक्ति सम्पदा ,मान ,ऐश्वर्य आदि प्राप्त कर सकता है, समय के प्रवाह को मोड़ कर उसकी दिशा अपने पक्ष में कर सकता है।
उद्यम जीवन का आवश्यक अंग है। ईश्वर भी उसकी सहायता करता है जो उद्यमी है। उद्यमी परिश्रम के बल पर अपने उद्देश्य प्राप्ति की ओर बढ़ता है और अंततः वह सफल भी होता है। असफलता उसे हताश नहीं करती है। वह काल्पनिक परेशानियाँ या चिंता पर समय नष्ट नहीं करता है, परस्थितियाँ कैसी भी हो ,उनका पूरे साहस से सामना करता है।
उद्यमी का ध्यान हमेशा अपने लक्ष्य की तरफ रहता है। अपने मन में दृढ विश्वास , संकल्प और सजगता के साथ सफलता व लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहता है। इस प्रयास से उसके हृदय में उत्साह उत्पन होता है जिससे वह बाधाओं से हतोत्साहित नहीं होता है।
उद्यमी ' चरैवेति - चरैवेति  ' अर्थात चलते रहो , के सिद्धांत का पालन करता है और उन्नति पथ पर आगे बढ़ता है। उद्यमी ठहरने को नकारता है क्योंकि ठहरने से जीवन नीरस बन जाता है। उद्यमी मानता है कि बैठे हुए व्यक्ति का भाग्य बैठ  जाता है ,खड़े होने वाले का भाग्य खड़ा हो जाता है तथा चलने वाले का भाग्य चलने लगता है। अतः वह शिथिलता का त्याग करके अपने कर्मपथ  पर आगे बढ़ता है।
तुलसी दासजी ने भी इस सन्दर्भ में कहा है - 
सकल पदारथ हैं जग माहीं , करमहीन  नर पावत नाहीं।
अर्थात - यह संसार सभी प्रकार के पदार्थों से भरा पड़ा है परन्तु उन्हें पाने के लिए परिश्रम आवश्यक है। परिश्रम या पुरुषार्थ ही मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र है; जिसके द्वारा इच्छित वस्तु को प्राप्त किया जा सकता है।  परिश्रमी व्यक्ति ही परिवार, समाज तथा  राष्ट्र की उन्नति कर सकता है।