Tuesday 30 May 2023

(3.2.7) Dev Pratima Ki Parikrama Ya Pradikshana

Dev Partima Ki Parikrama Ya Pradikshana Kya ? Kyon/ ? Kaise ?

देव प्रतिमा की परिक्रमा या प्रदक्षिणा क्या होती है ? कैसे की जाती है और क्यों की जाती है ?

देव प्रतिमा की परिक्रमा या प्रदक्षिणा

परिक्रमा या प्रदक्षिणा क्या होती है

हिन्दू मान्यता के अनुसार देवी-देवता की पूजा-अर्चना के साथ-साथ उनकी प्रतिमा या देवस्थान के चारों ओर श्रद्धाभाव से चलना परिक्रमा या प्रदक्षिणा कहलाता है।

परिक्रमा कैसे की जाती है -

किसी देवता की प्रतिमा या मन्दिर की परिक्रमा करते समय व्यक्ति का दाहिना हाथ देव प्रतिमा की तरफ रहना चाहिए  यानि प्रतिमा या मन्दिर की परिक्रमा दाहिने हाथ की तरफ से शुरू करनी चाहिए अर्थात जिस दिशा में घड़ी की सुइयाँ घूमती हैं उसी प्रकार परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा सहज गति से करनी चाहिए।
यदि किसी प्रतिमा के परिक्रमा करने के लिए परिक्रमा मार्ग या स्थान नहीं हो तो, ऐसी स्थिति में देव प्रतिमा के सामने  हाथ जोड़ कर खड़े हो जायें  और अपने पैरों को इस प्रकार चलायें जैसे हम चलकर परिक्रमा कर रहे हों।
परिक्रमा करते समय क्या करना चाहिए -
परिक्रमा शुरू करते समय इस प्रार्थना मन्त्र को बोलना चाहिए -
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणा पदे  पदे ।
यदि यह मन्त्र नहीं बोल पाएं तो , इस मन्त्र का अर्थ बोल दें, जो इस प्रकार है -
हे ईश्वर, मेरे द्वारा इस जन्म में और पूर्व  जन्म में जाने अनजाने किये गए सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ नष्ट हो जाएँ और ईश्वर मुझे सद्बुद्धि  दे।
इसके बाद उस देवता से सम्बन्धित मंत्र का मन ही मन जप करें।  परिक्रमा पूर्ण कर अंत में देव प्रतिमा को प्रणाम करें तथा पूर्ण विश्वास और श्रद्धा के साथ आशीर्वाद हेतु प्रार्थना करें।
परिक्रमा करने के लाभ -
देव स्थान व देव प्रतिमा के चारों ओर कुछ दूरी तक  दिव्य शक्ति का आभामण्डल रहता है।  इसलिए परिक्रमा करने से दिव्य ऊर्जा , सकारात्मक  शक्ति व शान्ति मिलती है और  ह्रदय परिपुष्ट होता है जिससे परिक्रमा करने वाले व्यक्ति की  भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति होती है।

किस देवता की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए - 

श्री गणेश जी की तीन।
श्री विष्णु जी (और उनके अवतारों की) चार।
सूर्य देव की सात।
श्री दुर्गा की एक।
हनुमान जी की तीन।
शिवलिंग की आधी। शिवलिंग की  आधी या अर्द्ध  परिक्रमा के सम्बन्ध में मान्यता है कि सोमसूत्र तक यानि सोमसूत्र को लांघा नहीँ जाता है।  सोमसूत्र से तात्पर्य उस स्थान से है जिस स्थान की ओर शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल गिरता है।
विशेष - देव परिक्रमा की बताई हुई संख्या न्यूनतम है।  यदि अधिक संख्या में परिक्रमा करनी हो तो, न्यूनतम संख्या के अनुपात में करें।