Saturday 19 November 2016

(7.1.8) Gand Mool Nakshatra / गंड मूल नक्षत्र या गण्डान्त मूल नक्षत्र

गंड मूल नक्षत्र या गण्डान्त मूल नक्षत्र / गंड मूल नक्षत्र क्या होते हैं ?अभुक्त मूल क्या होता है ?Gand Mool Nakshatra / Which are Gand Mool Nakshatra ? What is the effect of Gand Mool Nakashatra on the native 

Gand Mool Nakshatra kaunase Hote Hain / गण्ड मूल नक्षत्र कौनसे होते हैं ?
मूल , जेष्ठा ,अश्लेषा ,रेवती ,अश्विनी और मघा ,ये छ नक्षत्र गंड मूल नक्षत्र कहलाते हैं।इन में भी मूल,जेष्ठा व अश्लेषा विशेष गंड कारक होते हैं।अश्विनी ,रेवती व मघा ये उपगंड नक्षत्र हैं। 
गंड मूल नक्षत्र में जन्मे बालक - बालिका के लिए शांति कर्म करवाना चाहिए।यह  शांति कर्म वही नक्षत्र फिर लौट कर आये तब उसी नक्षत्र में  करना चाहिए।लेकिन किसी कारण वश उस समय का अतिक्रमण हो जाये  तो शांति कर्म - सूतकान्त समय में या तेरहवें  दिन , आठवें वर्ष में या जब कभी भी शुभ समय में जन्म नक्षत्र लौट कर आये , तब करवानी चाहिए। 
हालांकि गंड मूल नक्षत्रों में जन्म होना अच्छा नहीं माना जाता है।परन्तु इन नक्षत्रों में से कुछ नक्षत्रों के कुछ चरण ऐसे होते हैं  जो बालक -बालिका के लिए शुभ होते हैं।(और जो चरण ख़राब होते हैं , वे शांति कर्म से शुभ होते हैं।)
गंड मूल नक्षत्रों का जातक पर प्रभाव :-
नक्षत्र चरण के अनुसार जातक पर निम्नानुसार प्रभाव पड़ता है:-
1. अश्विनी नक्षत्र - 
पहला चरण - पिता को कष्ट।
दूसरा चरण - सुख सम्पति।
तीसरा चरण - मंत्री पद।
चौथा चरण - राज सम्मान।
2.  अश्लेषा नक्षत्र - 
पहला चरण -राज्य सुख (शांति कर्म से )।
दूसरा चरण - धन हानि ।
तीसरा चरण - माता के लिए कष्ट दायक ।
 चौथा चरण - पिता के लिए ख़राब ।
3. मघा नक्षत्र :-
पहला चरण - माता के लिए ख़राब ।
दूसरा चरण - पिता के लिए ख़राब ।
तीसरा चरण - सुख सम्पति ।
चौथा चरण - धन लाभ ,विद्या लाभ ।
4. जेष्ठा नक्षत्र :-
पहला चरण -बड़े भाई के लिए ख़राब ।
दूसरा चरण - छोटे भाई के लिए ख़राब ।
तीसरा चरण - पिता के लिए ख़राब ।
चौथा चरण - स्वयं के लिये ख़राब।
5. मूल नक्षत्र :-
पहला चरण - पिता को कष्ट।
दूसरा चरण - मात के लिए ख़राब ।
तीसरा चरण - धन नाश ।
चौथा चरण - शांति कर्म से शुभ।
6. रेवती :-
पहला चरण - राज सम्मान।
दूसरा चरण - मंत्री पद ।
तीसरा चरण - सुख सम्पति ।
चौथा चरण - अनेक कष्ट।
अभुक्त मूल :- 
नारद संहिता के अनुसार जेष्ठा की अंतिम चार घटी तथा मूल नक्षत्र की शुरू की चार घटी(एक घटी में 24 मिनट होते हैं) अभुक्त मूल कहलाता है।
आचार्य वशिष्ठ के अनुसार - जेष्ठा की अंतिम एक घटी और मूल नक्षत्र के प्रारम्भ की दो घटी  मिलाकर अभुक्त मूल है।
बृहस्पति के अनुसार जेष्ठा के अंत की आधी घटी और मूल नक्षत्र के प्रारम्भ की आधी घटी ,कुल एक घटी अभुक्त मूल है।
इस अभुक्त मूल की अवधि को बहुत  ख़राब माना  जाता है।इस अवधि में जन्मे बच्चे के लिए नक्षत्र शांति करानी चाहिए।यह नक्षत्र शांति कर्म जब वही नक्षत्र दुबारा लौट कर आये, उस दिन कराना चाहिए।   
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(7.1.8) Gand Mool Nakshatra 
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