Saturday 5 November 2016

(8.8.2) Pradosh Vrat प्रदोष व्रत विधि (हिंदी में )

प्रदोष व्रत / प्रदोष व्रत विधि (हिंदी में ) / प्रदोष व्रत के लाभ /प्रदोष व्रत का उद्यापन / Pradosh Vrat Vidhi / Pradosh Vrat benefits 

प्रदोष व्रतकब किया जाता है When is Pradosh vrat observed 
प्रदोष व्रत शिवजी की प्रसन्नता और प्रभुत्व प्राप्ति के उद्देश्य से प्रत्येक माह  के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में आने वाली त्रयोदशी को किया जाता है। शिव पूजन और रात्रि भोजन के अनुरोध से इसे 'प्रदोष' कहते हैं। इसका समय सूर्यास्त से दो घड़ी रात बीतने तक है। जो मनुष्य प्रदोष के समय परमेश्वर ( शिवजी ) के चरण कमल का अनन्य भाव से आश्रय लेता है उसके धन - धान्य, स्त्री - पुरुष, बंधु  - बांधव और सुख - शांति  सदैव बढ़ते रहते हैं।
 पूजा विधि - प्रदोष व्रत करने वाले को त्रयोदशी के दिन, दिनभर  भोजन नहीं करना चाहिए। शाम के समय जब सूर्यास्त से तीन घटी  का समय शेष रह जाये तब स्नानादि कर्मों से निवृत्त  होकर, श्वेत वस्त्र धारण करे। फिर संध्या वंदन के बाद शिव जी का पूजन शुरू करे। पूजा के  स्थान पर कुश या ऊन का आसन बिछाकर उस आसन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ जाये। फिर भगवान महेश्वर  की स्थापित मूर्ति का इस प्रकार ध्यान करे -
ध्यान का स्वरूप 
करोड़ों चन्द्रमा के समान कांतिमान, त्रिनेत्र धारी, मस्तक पर चन्द्रमा का भूषण धारण करने वाले, पिंगल वर्ण के जटा जूठ धारी, नीलकंठ तथा अनेक हारों से सुशोभित वरद हस्त, परशुधारी, नागों के कुंडल पहने, व्याघ्र चरम धारण किये हुए, रत्न जटित सिंहासन पर विराजमान शिवजी का ध्यान करे।
मानसिक संकल्प :-
फिर मानसिक संकल्प करे इस के लिए हाथ जोड़कर मन में देवादिदेव शंकर का ध्यान करते हुए कहना चाहिए कि हे भगवान शंकर, आप सम्पूर्ण पापों के नाश निमित्त  प्रसन्न होइये। शोक रूपी अग्नि में दग्ध, संसार के भय से भयभीत एवं अनेक प्रकार के रोगों से आक्रांत इस अनाथ की आप रक्षा कीजिये। आप देवी  पार्वती सहित  पधार कर मेरी पूजा ग्रहण कीजिये। ऐसा करने के बाद 'ॐ नमः शिवाय' इस मन्त्र द्वारा उन का आव्हान करना चाहिए।  इस के बाद जल से शिवजी को स्नान कराये फिर वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध, द्रव्य और आभूषण आदि अर्पित करें। पुष्प और बेलपत्र चढाने चाहिए।  धूप दीप देकर नैवेद्य अथवा शक्कर या गुड से युक्त मिष्ठान्न  अर्पित करें। फिर ताम्बुल आदि चढ़ाकर आरती करनी चाहिए। अंत में 'ॐ नमः शिवाय' मन्त्र का एक हजार बार जप करना चाहिए। पूजा समाप्ति के बाद ब्राह्मण को भोजन करा कर यथाशक्ति दक्षिणा देनी चाहिए।
कामना के लिये प्रदोष व्रत :-
प्रदोष व्रत को किसी कामना के लिए करना हो तो वह इस प्रकार है -
1.पुत्र प्राप्ति की कामना हो तो शुक्ल पक्ष की जिस त्रयोदशी को शनिवार हो, उससे प्रारंभ करके वर्ष पर्यंत या फल प्राप्त होने तक व्रत करे।
2.ऋण मोचन की कामना हो तो, जिस त्रयोदशी को मंगलवार हो, उससे आरम्भ करना चाहिए।
3.सौभाग्य और स्त्री की समृद्धि की कामना को तो, जिस त्रयोदशी को शुक्रवार हो, उससे आरम्भ करे।
4.अभीष्ट सिद्धि की कामना हो तो, जिस त्रयोदशी को सोमवार हो, उससे आरम्भ करना चाहिये।
5.आयु आरोग्यादि की कामना हो तो, जिस त्रयोदशी को रविवार हो, उससे आरम्भ करके प्रत्येक शुक्ल कृष्ण त्रयोदशी को एक वर्ष तक करे।
व्रत का उद्यापन
व्रत का उद्यापन करने के पहले दिन गौरी - गणेश पूजन करके घर में या किसी शिवालय में बंधु - बांधवों सहित कीर्तन करते हुए रात्रि भर जागरण करे। अगले दिन स्नानादि से निवृत्त होकर एक मंडप का निर्माण करके भगवान शिव और देवी पार्वती  के चित्र को स्थापित करे, उनका विधिवत पूजन करे। फिर खीर से हवन  करे। अपने वरण  किये हुए आचार्य या ब्राह्मण को वस्त्र आदि वस्तुएं अपने सामर्थ्य के अनुसार दे। ब्राह्मणों को भोजन कराये  और उन्हें दक्षिणा देकर संतुष्ट करे।
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