Tuesday 8 November 2016

(8.1.17) Haritalika Teej हरितालिका तीज व्रत विधि तथा महत्व

When is Haritalika Teej / Haritalika Teej Vrat process / Hari Talika Teej story in Hindi
हरितालिका तीज / हरितालिका तीज व्रत विधि तथा महत्व 

When is Haritalika Teej हरितालिका तीज कब है ?
भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हरतालिका व्रत किया जाता।
Haritalika Teej Vrat Vidhi हरितालिका तीज व्रत विधि 
सुहागिन स्त्रियाँ इस दिन शंकर पार्वती की बालू की मूर्ति बनाकर पूजा करती हैं। सुंदर वस्त्रों,कदली स्तम्भों  से घर को सजा कर नाना प्रकार के मंगल गीतों से रात्रि जागरण करती हैं। इस दिन व्रत रखने वाली स्त्रियाँ स्नान कर के नये कपड़े पहनती हैं।  थाली में पूजा की सामग्री रख कर शिवजी और पार्वती की पूजा करके प्रसाद चढ़ाती हैं।  कहानी सुनने के बाद शिवजी और पार्वती को धोती ,अंगोछा चढ़ा कर आरती उतारती  हैं। पार्वती  के लिए एक सुहाग पिटारी व तेरह मिठाई चढ़ाती हैं। फिर ब्राह्मण को धोती और अंगोंछा दान में देती हैं और सुहाग पिटारी किसी ब्राह्मणी को दिया जाता है। विवाहित स्त्रियाँ रुपये और तेरह मिठाइयाँ अपनी सासू माँ को देकर उनके पैर छूती हैं और आशीर्वाद लेती हैं। इस व्रत को करने वाली स्त्रियाँ संसार में सुख भोग करके शिव लोक को जाती हैं।
इसी दिन 'हरिकाली', 'हस्तगौरी',और 'कोटीश्वरी' आदि के व्रत भी होते हैं। इन सब व्रतों में पार्वती  के पूजन का प्राधान्य है। इन व्रतों को स्त्रियाँ करती हैं। 
Haritalika Teej Vrat story हरितालिका तीज से जुड़ी कथा -
हिमालय पुत्री ने शंकर को पति रूप में पाने के लिये कठिन तपस्या प्रारम्भ की। उसी घोर तपस्या के समय नारद जी राजा हिमालय के पास आये और कहा कि आपकी कन्या पार्वती का विवाह विष्णु भगवान  के साथ कर दें। नारद की बात को हिमालय ने स्वीकार कर लिया। फिर नारदजी विष्णु के पास गए और कहा कि आपका विवाह हिमालय ने पार्वती के साथ करना तय कर दिया है। इसकी स्वीकृति दें। पिता हिमालय ने पार्वती को भगवान विष्णु के साथ विवाह के बारे में बतलाया तो यह सुनकर पार्वती  को बहुत दुःख हुआ और एक सखी के पास जाकर बोली के मैं भगवान शंकर के साथ विवाह करने के लिए कठोर तपस्या प्रारम्भ  कर रही हूँ उधर मेरे पिता मेरा विवाह भगवान विष्णु के साथ करना चाहते हैं। यदि तुम मेरी सहायता कर सको तो बोलो ,अन्यथा मैं प्राण त्याग दूंगी। सखी ने सांत्वना देते हुये कहा कि मैं तुम्हें ऐसे वन में ले चलूँगी कि तुम्हारे पिता को कोई पता नहीं चलेगा। 
इस प्रकार पार्वती अपनी सखी के साथ घने जंगल में चली गई। इधर पिता हिमालय को पार्वती नहीं मिली तो वे बहुत दुखी हुए। वचन भंग की चिंता ने उनको मूर्छित कर दिया। तब सभी लोग पार्वती की खोज में लग गये। उधर सखी सहित पार्वती एक गुफा में शंकर के तपस्या करने लगी। भाद्रपद शुक्ला तृतीया को उपवास रखकर पार्वती  ने शिवलिंग स्थापित करके पूजन तथा रात्री जागरण किया। पार्वती के इस कठिन तप से भगवान शंकर को आना पड़ा तथा पार्वती  की मांग और इच्छा के अनुसार उसे अर्धांगिनी रूप में स्वीकार करना पड़ा। तत्पश्चात शंकर तुरन्त कैलाश पर्वत पर चले गए प्रात: बेला में जब पार्वती पूजन सामग्री नदी में छोड़ रही थी कि  हिमालय राजा उस स्थान पर पहुँच गए।  वे पार्वती को देखकर रोते हुए पूछने लगे बेटी !तुम यहाँ कैसे आ गयी ? तब पार्वती ने विवाह वाली प्रतिज्ञा सुना दी। पार्वती की इच्छा पूर्ति करने हेतु उन्होंने शास्त्र विधि से पार्वती का विवाह शिव से कर दिया।  सखी द्वारा हरी जाने पर इसका हरितालिका नाम पड़ गया।  जो स्त्री इस व्रत को परम श्रद्धा से करेगी उसे पार्वती के समान ही अचल सुहाग मिलेगा।