Tuesday 10 March 2015

(3.1.7) Gayatri Mantra, Kyon / Why to Jap Gayatri Mantra

Gayatri mantra ka jap kyon karen गायत्री मंत्र का जप क्यों करें 

शब्दों  की  शक्ति को  प्रतिदिन के  जीवन में अनुभव किया जाता रहा हैं। शब्दों  से व्यक्ति को क्रोधित किया जा सकता हैं, व्यथित किया जा सकता हैं, प्रसन्न किया जा सकता हैं। इसी प्रकार मन्त्र एक या एक से अधिक शब्दों का समूह होता हैं जिसका श्रद्धा व निष्ठा के साथ मनन व चिंतन किया जाए तो एक विशिष्ठ वातावरण निर्मित होता हैं। इसका मनन व चिंतन करने वाला व्यक्ति अपने अन्दर व अपने आस-पास इस  को अनुभव कर सकता हैं। जब  व्यक्ति  किसी विचार का बार-बार मनन करता हैं तो उसका उस पर प्रभाव पड़ता हैं। इसलिए मनोवैज्ञानिकों की राय हैं कि व्यक्ति वैसा ही बनता है जैसा वह सोचता हैं और चिंतन करता हैं। उसकी सफलता, आचरण, व्यवहार उसकी सोच व चिंतन से प्रभावित होते हैं। मंत्र इष्ट शक्ति का सूक्ष्म स्वरुप होता हैं। जिसके बार बार मनन करने व इष्ट के स्वरुप का ध्यान करने से साधक की चित्तवृत्तियाँ, स्वभाव आदि उसी मंत्र के गुण धर्म के अनुरूप बन जाते हैं। लेकिन मंत्र का जप शब्दों के बार बार दोहरान तक सीमित नहीं है, यह जप तब प्रभावी होता है जब इसके साथ  भावना जुड़ जाएँ। यह भावना श्रद्धा और विश्वास की होती है। इसी भावना से उस मंत्र जप का फल व प्रभाव देखा जा सकता है। शारीरिक व मानसिक शुद्धता तथा संयम भी मंत्र जप के फल में वृद्धि करतें हैं। मंत्र जप से साधक के  शरीर में एक प्रकार की उर्जा उत्पन्न होती है इस उर्जा को साधक अपने हित में तथा अन्य लोगों के हित में उपयोग कर सकता है। प्राचीनकाल में मंत्र शक्ति से अस्त्र-शस्त्र  चलाये जाते थे।गायत्री मंत्र सद् बुद्धि का मंत्र माना  गया है। इस मंत्र के अक्षरों में ज्ञान-विज्ञान तो भरा हुआ है इसके अतिरिक्त इस महामंत्र की रचना भी ऐसे विलक्षण ढंग से हुई है कि उसका उच्चारण एवं साधना करने से शरीर और मन के सूक्ष्म केन्द्रों में छिपी हुई अत्यंत महत्वपूर्ण शक्तियां जागृत होती हैं जिनके कारण देवी वरदानों की तरह सद् बुद्धि प्राप्त होती है। सद् बुद्धि द्वारा लाभ उठाना भी सरल है परन्तु असद् बुद्धि वाले के लिए यही बड़ा कठिन है कि वह अपने आप कुसंस्कारों को हटाकर सुसंस्कारित सद् बुद्धि का स्वामी बन जाये। इस कठिनाई का हल गायत्री महामंत्र की उपासना द्वारा होता है। जो इस साधना को करतें हैं वे अनुभव करतें हैं कि  कोई अज्ञात शक्ति रहस्यमय ढंग से उनके मन क्षेत्र में नवीन ज्ञान, प्रकाश, नवीन उत्साह आश्चर्यजनक रीति से  बढ़ा रही है।
(1) गायत्री, देवी तत्वों से परिपूर्ण बुद्धि का नाम है जिसकी प्रेरणा से मनुष्य का मष्तिष्क और शरीर कल्याणकारी मार्ग का अनुशरण करता है। जिसके हर कदम पर आनंद का संचार होता है। सात्विक विचार और कार्यों को अपनाने से मनुष्य की प्रत्येक शक्ति की रक्षा और वृद्धि होती है। उसकी प्रत्येक क्रिया उसे अधिक पुष्ट, शशक्त एवं सुदृढ़ बनाती है और वह प्रतिदिन अधिक शक्ति संपन्न बनता चला  जाता  है। मन में अपरिग्रह, परमार्थ, मैत्री, करुणा, नम्रता , धर्म, श्रद्धा, ईश्वर परायणता आदि की भावना विकसित होती  है। यह भावना जहाँ  रहती है वहाँ  के परमाणु सदैव प्रफुल्ल  और चेतन्य रहतें हैं  तथा उनका विकास  होता है। इस प्रकार गायत्री सद् बुद्धि देकर हमारी प्राण रक्षा का सेतु बनती हुई अपने नाम को सार्थक करती है। 
(2) गायत्री एक प्रकाश है, एक आशापूर्ण सन्देश है, एक दिव्य मार्ग हैं जो हमें समस्त भौतिक, आध्यात्मिक, सांसारिक और मानसिक आनंदों की खान तक ले जाता हैं। वह हमारे मूंदे हुए विवेक के तृतीय नेत्र को खोलती हैं। यह हमें सद् विवेकी बऩाती हैं जिससे हम इस संसार को देख सकें। 
(3) आत्मा में अनेक ज्ञान-विज्ञान, साधारण, असाधारण, अद् भुत, आश्चर्यजनक शक्ति के भण्डार छिपे पड़े हैं, गायत्री मंत्र के जप से वे खुल जातें हैं और जपकर्ता अपने को असाधारण शक्ति से भरा हुआ अनुभव करता है। 
(4) सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिये बाहर से कुछ नहीं लाना पड़ता है केवल अंतःकरण पर पड़े हुए आवरण को हटाना पड़ता है। गायत्री की सतोगुणी साधना मानसिक अन्धकार के पर्दे को हठा देती है और आत्मा का सहज ईश्वरीय रूप प्रकट हो जाता है। आत्मा का यह  निर्मल रूप सभी रिद्धि सिद्धियों से परिपूर्ण होता है। 
(5) गायत्री साधना द्वारा हुई सतोगुणों की वृद्धि अनेक प्रकार की आध्यात्मिक और सांसारिक समृद्धियों को जन्म देती है। शरीर और मन  को  शुद्ध बनाती  है जिससे सांसारिक जीवन अनेक प्रकार से सुखी व शांतिमय बन जाता है। 
(6) गायत्री मंत्र जप आत्मा में विवेक और आत्मबल को बढाता  है जो अनेक ऐसी कठिनाइयों को जो दूसरों को पर्वत के सामान भारी मालूम पड़ती हैं, उस आत्मवान व्यक्ति के लिए तिनके के समान हल्की बन जाती हैं। उसका कोई कार्य रुका नहीं रहता या तो उसकी इच्छानुसार परिस्थितियाँ बदल जाती हैं या फिर परिस्थितिनुसार उसकी इच्छा बदल जाती है। क्लेश का कारण इच्छा और परिस्थिति के बीच प्रतिकूलता का होना ही तो है। विवेकवान इन दोनों में से किसी एक को अपनाकर उस संघर्ष को टाल  देता है और सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करता है। 
(7) गायत्री सद् बुद्धि की देवी है और साधक उससे सद् बुद्धि की प्रार्थना करता है। इस सद् बुद्धि द्वारा सभी प्रकार के दुखों को मिटाया जा सकता है। सद् बुद्धि के प्रकाश में वे सभी उपाय दिखाई देने लगतें हैं जिनको काम में लाने पर दुःख के कारण दूर हो जातें हैं।
(8) गायत्री साधना द्वारा मानसिक परिष्कार, व्यक्तित्व के विकास, दुखों के निवारण और आत्मिक विकास के दिव्य लाभों के अतिरिक्त कई सिद्धियाँ और शक्तियाँ भी प्राप्त होती हैं। इन शक्तियों को क्रमशः अर्जित करते हुए व्यक्ति अनुपम, अद्वितीय व असाधारण व्यक्तित्व का स्वामी बन जाता है।