Gayatri Mantra Ka Hindi Men Arth गायत्री मन्त्र का हिन्दी में अर्थ
गायत्री मन्त्र का हिन्दी में अर्थगायत्री मन्त्र एक वैदिक मन्त्र है। ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद में गायत्री मन्त्र का उल्लेख है। गायत्री मन्त्र गायत्री छन्द में है अतः इसका नाम गायत्री है। ब्रह्ममुख से निर्गत होने कारण इसको ब्रह्म गायत्री भी कहते हैं। गायत्री मन्त्र के देवता सविता हैं और इसके ऋषि विश्वामित्र हैं। गायत्री मन्त्र में 24 अक्षर हैं। इस मन्त्र में (गायत्री छन्द के अनुसार ) आठ - आठ अक्षरों के तीन चरण हैं। चरणों के पूर्व तीन व्याहृतियाँ (भूः , भुवः , स्वः ) हैं। और व्याहृतियों से पूर्व प्रणव अर्थात ॐ लगाया जाता है। इस मन्त्र का पूरा स्वरुप इस प्रकार है -
ॐ भूर्भुव: स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् !!
गायत्री मन्त्र का अर्थ इस प्रकार है:-
ॐ - परब्रह्म परमात्मा का नाम है
भूः - प्राणस्वरुप
भुवः - दुःख नाशक
स्वः - सुख स्वरुप
तत् - वह ईश्वर
सवितु - तेजस्वी
वरेण्यं - श्रेष्ठ
भर्गो - पापों का नाश करने वाला
देवस्य - दिव्य, देने वाला
धीमहि - धारण करें
धियो - बुद्धि
यो - जो
नः - हमारी
प्रचोदयात् - प्रेरित करें
भावार्थ:-
उस प्राणस्वरूप, दुखनाशक, सुखस्वरूप, तेजस्वी, श्रेष्ठ, पापनाशक, देवस्वरूप को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें, वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करे।
अर्थ का चिंतन:- ॐ रुपी परमात्मा जो पृथ्वीलोक, अन्तरिक्षलोक और स्वर्गलोक में सूक्ष्म रूप में व्यापकता के साथ समाया हुआ है वह मेरी गतिविधियों का निरीक्षण भी कर रहा है और संचालन भी कर रहा है। वह ई श्वर मेरे अंतःकरण में प्रविष्ट होकर मुझे तेजस्वी और श्रेष्ठ बना रहा है। मेरे अंतःकरण में ईश्वर के निवास के कारण मेरी बुद्धि निर्मल होती जा रही है। मैं महान सोच का स्वामी बनता जा रहा हूँ। महानता मेरे जीवन का लक्ष्य बन रहा है। ईश्वर के मेरे अंतःकरण में प्रविष्ट होने से मैं तेजस्वी, श्रेष्ठ और दिव्य बनता जा रहा हूँ। मैं सद् मार्ग का अनुसरण कर रहा हूँ। विश्व की महानतम शक्ति मुझ पर बरस रही है और मैं मेरे परम लक्ष्य की और बढता जा रहा हूँ।