Thursday, 8 October 2015

(2.3.6) Gyani Vyakti (Wisest Person)

सबसे ज्ञानी व्यक्ति 

यूनान के डेल्फी में एक देवी  भविष्यवाणियां करने के लिए विख्यात थी।एक दिन किसी ने उसे पूछा,"इस समय यूनान में सबसे ज्ञानी व्यक्ति कौन है ?"
देवी ने कहा ,"सुकरात।"
यह सुनकर कुछ लोग सुकरात के पास गए और बोले,"देवी ने घोषणा की है कि तुम इस समय यूनान में सबसे बुद्धिमान और ज्ञानी व्यक्ति हो।"
सुकरात के कहा ,"यह गलत है।मैं विद्वान या ज्ञानी  नहीं हूँ, मै तो अज्ञानी हूँ, वैसे  ज्ञान प्राप्त की मेरी इच्छा अवश्य है।"
यह सुनकर लोग फिर देवी के पास गए और बोले,"आप ने तो सुकरात को यूनान का सबसे बुद्धिमान और ज्ञानी व्यक्ति बताया था।लेकिन वह तो इन्कार करता है और कहता है कि वह तो अज्ञानी है।"
देवी ने कहा,"बस,इसी लिए तो वह सबसे बड़ा बुद्धिमानी और ज्ञानी है, क्योंकि  विद्वान और ज्ञानी  होते हुए भी उसे अपने ज्ञान का अहंकार नहीं है।"
शिक्षा :- विद्वान और ज्ञानी  व्यक्ति को कभी भी अपने ज्ञान का अहंकार नहीं होता है।

(2.3.5) Einstein Ki Sadagi (in Hindi )

आइन्स्टाइन की सादगी 

नोबेल पुरस्कार विजेता महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टाइन बहुत सादा जीवन बिताते थे। उनको दैनिक जीवन में दिखावा पसंद नहीं था। उनके पचासवें जन्म दिन के अवसर पर, उनके प्रशंसकों ने उनकों शुभ कामनायें भेजी।कुछ प्रशंसक व्यक्ति गत रूप से उन्हें बधाई देना चाहते थे। इस लिए वे उनके साथ गुलदस्ते लाए और उनके घर गये।उस समय आइन्स्टाइन अपनी प्रयोग शाला में कार्य कर रहे थे।उनकी पत्नी  उनके (प्रशंसको के) आने की सूचना देने के लिए प्रयोग शाला में गई। वे उनकी पत्नी के साथ बाहर  आये।उनकी पत्नी नहीं चाहती थी कि  उसके पति गंदे कपडों  में उनके प्रशंसकों  से मिले।वह झुंझलाते हुई बोली,"इन लोगों से मिलते समय आप कम से कम गन्दीऔर पुरानी  पतलून तो बदल लेते।"आइन्स्टाइन हँसे और विनोद करते हुए बोले " ये  लोग मुझ से मिलने आये हैं, मेरी पतलून से नहीं।"आइन्स्टाइन की पत्नी मौन हो गई।आइन्स्टाइन उन्ही गंदे और पुराने कपड़ों में लोगों से मिलकर उनकी शुभ कामनायें स्वीकारते रहे। ऐसी थी आइन्स्टाइन  की सादगी।

(2.3.4) Tenzing Norgey (Life Story of TenZing Norgay in Hindi)

तेनजिंग नोर्गे - परिश्रमी, साहसी और हिम्मती व्यक्ति की जीवनी 

तेनजिंग का जन्म 1914में हुआ था। वह उसके माता  पिता के साथ नेपाल के एक छोटे से गाँव में रहता  था।गाँव में या उसके आस पास कोई विद्यालय नहीं था।गरीबी के कारण उसके माता पिता उसे कस्बे के विद्यालय  में नहीं भेज सके।तेनजिंग उसके बचपन से ही   पहाड़ियों के बीच दिन को बिताना और नए स्थानों का भ्रमण करना पसंद करता था।
1935में ब्रिटिश दल ने उसे भार  वाहक के रूप में चुन लिया। दल एवेरेस्ट पर जाने के लिए तैयार था। तेनजिंग इस दल के साथ गया। वह नोर्थ कोल पहुँचने वाले कुछ शेरपाओं में से एक था। यह एवेरेस्ट के रास्ते में एक महत्वपूर्ण स्थान है। 1935 के बाद तेनजिंग  पर्वतारोहियों के कई दलों में शामिल हुआ। वह हमेशा पर्वतारोहियों के मुख्य दल के साथ रहता था। वह अभी तक भी भार वाहक के रूप में काम करता था लेकिन उसने शीघ्र ही पहाड़ों  पर चढ़ना सीख लिया। उसने 1938 में पर्वतारोहण के लिए मेडल जीता।
कठोर परिश्रम के कारण तेनजिंग एक अच्छा पर्वतारोही बन गया। वह खराब मौसम में भी चढ़ सकता था। वह अपने लिए सबसे मुश्किल कार्य को चुनता था।वह कठिनाई के समय दूसरे भार वाहकों की भी सहायता करता था।
1952 में तेनजिंग एक स्विस पर्वतारोही दल में शामिल हो गया। इस दल ने दो प्रयास किये परन्तु एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने में असफल रहे।दो पर्वतारोही - तेनजिंग और लेम्बर्ट 27500फीट की ऊँचाई तक पहुँच गए।उन्होंने वहाँ बिना स्टोव और बिना स्लीपिंग बैग्स के रात्रि बिताई।उन्होंने अपने आप को गर्म रखने के लिए एक दूसरे  को थप्पड़ लगाई।सुबह  वे नीचे आये।एवरेस्ट  पर चढने का यह तेनजिंग के लिए छठा प्रयास था।
1953 का ब्रिटिश पर्वतारोहियों का प्रयास तेनजिंग के लिए सातवाँ  प्रयास था। इस बार वह शेरपाओं का नेता होने के साथ साथ पर्वतारोही भी था।इस दल ने 27900 फीट की ऊँचाई पर नवां कैंप लगाया। वहाँ से एवरेस्ट की चोटी  पर चढने के लिए प्रयास किया। इस दल ने दो व्यक्तियों को भेजा लेकिन वे चोटी  पर चढने में असफल रहे।फिर तेनजिंग और एडमंड हिलेरी ने  अगला प्रयास किया।उन्होंने सुबह  जल्दी ही कैंप को छोड़ दिया और तीन घंटे तक चढ़ते रहे।वे अब चोटी से केवल 300फीट दूर थे। वे धीरे धीरे चोटी  की  तरफ चढ़ते रहे और लगभग  दो घंटे में वहां  पहुंचे। दो आदमी, तेनजिंग नोर्गे और एडमंड हिलेरी 29 मई 1953 को सुबह 11.30 बजे चोटी  पर खड़े थे।वे  29028 फीट की ऊँचाई तक पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने कठिन परिश्रम,दृढ़ निश्चय,साहस और इच्छा शक्ति के कारण सफलता प्राप्त की और संसार में प्रसिद्ध हो गए।
शिक्षा :- कठिन परिश्रम,दृढ़ निश्चय,साहस और इच्छा शक्ति ही सफलता की कुंजी है। 



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(2.3.3) Teen Prashna (Three Questions)

 तीन प्रश्न 

एक बार एक महत्वाकांक्षी राजा था।वह किसी भी कार्य में असफल नहीं होना चाहता था। इस के लिए वह तीन बातें जानना चाहता था -
 1.किसी कार्य को करने का सही समय कौनसा है?
 2 .सही व्यक्ति कौनसा है जिस की बातें उसे माननी चाहिए और किस व्यक्ति की अवहेलना करनी चाहिए?
3. वह महत्वपूर्ण कार्य कौनसा  है, जिसे उसे करना चाहिए?
राजा इन प्रश्नों के उत्तर जानने हेतु एक प्रसिद्ध सन्यासी के पास गया।सन्यासी ने उसके प्रश्नों के उत्तर निम्नानुसार दिए - 
1. वर्तमान समय ही सबसे महत्वपूर्ण समय है क्योंकि केवल यही समय होता है जब हममें किसी कार्य को करने की शक्ति होती है। 
2. सबसे महत्व पूर्ण व्यक्ति वह है जो इस समय हमारे साथ है। 
3. सबसे महत्वपूर्ण कार्य है, उस व्यक्ति की भलाई करना जो इस समय हमारे साथ है क्योंकि ईश्वर ने हमें दूसरों की भलाई करने के लिए ही इस धरती पर भेजा  है। 
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(2.3.2) Lal Bahadur ki Sanvedansheelata

 लाल बहादुर की संवेदन शीलता  

जब लाल बहादुर 6 वर्ष के थे तब एक दिन वे लड़कों  के एक समूह के साथ केवल शरारत की नीयत से एक उद्यान में प्रवेश किया। जब उनके साथी पेड़ों पर चढ़ गए और फल तोड़ने लगे,तब लाल बहादुर ने विचार पूर्ण भाव के साथ चारों तरफ देखा व पास की झाड़ी से एक फूल तोडा। तभी उन लडको में से एक लडके ने माली को आते हुए देख कर खतरे की चेतावनी दी,और तुरंत ही लाल बहादुर के अलावा  सभी लडके गायब हो गए। माली ने लाल बहादुर को पकड़ लिया और पिटाई कर दी।
लाल बहादुर ने कहा,"मैं एक गरीब और बिना पिता का लड़का हूँ , आप मुझे मत पीटो।"
माली मुस्कराया और उत्तर में बोला,"मेरे बच्चे,तब तो इस कारण से तुम्हे और भी अधिक अच्छा  व्यवहार करना चाहिए।"फिर उन्होंने (लाल बहादुर ने ) शपथ ली कि वे अन्य लड़कों की अपेक्षा अधिक अच्छा व्यवहार करेंगे और अपने आप से कहा कि  उन्हें ऐसा इसलिए करना होगा क्योंकि उनके पिता जीवित नहीं हैं।
लाल बहादुर के प्रारम्भिक जीवन की यह घटना,उनकी अतिशय संवेदन शीलता को प्रकट करती है।

Wednesday, 7 October 2015

(2.3.1) This is the Difference

This is the Difference  यही मुख्य अंतर है 

तानसेन के गुरु,हरिदास के संगीत की विशेषताओं को सुनकर अकबर ने इसे सुनने की तीव्र इच्छा की।इसलिए वह स्वामी के संगीत को सुनने के लिए तानसेन के साथ उनके आश्रम पर गया ।वे स्वामी हरिदास का संगीत सुनने के लिए कई दिनों तक उनके आश्रम में रुके।लेकिन स्वामी जी ने नहीं गाया क्योंकि वे तभी गाते थे,जब उनकी इच्छा होती थी।फिर एक दिन तानसेन ने जानबूझ कर अशुद्ध स्वर छेड़ दिया।स्वामी जी को यह सहन नहीं हुआ और वे स्वयं गाने लगे।
उन्होंने वही गीत ठीक प्रकार से गाया,तरंग ने आकर उन्हें आवृत्त कर लिया और वे स्वयं को उस संगीत  में भूल गए जो पृथ्वी और आकाश पर छा गया।अकबर और तानसेन ने स्वयं को  स्वर माधुर्य और संगीत के आकर्षण में भुला दिया।
यह एक अद्वितीय अनुभूति थी।जब संगीत रुका,अकबर तानसेन की ओर मुड़ा और बोला,"तुम कहते हो तुमने इस संत से संगीत सीखा है और तब भी तुम इसका सम्पूर्ण जीवंत आकर्षण खो चुके मालूम पड़ते हो।तुम्हारा संगीत इस मर्मस्पर्शी संगीत के समक्ष भूसा मात्र प्रतीत होता है।
"यह सत्य है,श्रीमान,"तानसेन ने कहा,"यह सत्य है कि मेरा संगीत मेरे गुरु की जीवंत स्वरसंगति और माधुर्य की समक्ष भावशून्य और निर्जीव है।परन्तु यहाँ यह अंतर है कि  मैं सम्राट के आदेश पर गाता हूँ,परन्तु मेरे गुरु किसी व्यक्ति के आदेश पर नहीं गाते हैं, वे केवल तभी गाते हैं जबकि उनके अंतरतम की आत्मा से प्रेरणा प्राप्त होती है। इसी से सारा अंतर है।   

(2.2.3) Practical Quotations in Hindi

Practical Quotations in Hindi व्यवहारिक कोटेसन 

(1) अपने कार्य के प्रति निष्ठा रखो। कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता है। निष्ठा से किया गया कार्य स्वतः ही बड़ा लगने लगता है।
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(2) अपने सहकर्मियों का सम्मान करें व उन्हें  नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करें। अपने अधीनस्थों पर विश्वास करें परन्तु उनकी गतिविधि उनके व उनके द्वारा किये गए कार्य पर अपनी नज़र रखें।
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(3) किसी कार्य को  जल्दबाजी या  हडबड़ाहट में नहीं करें क्योंकि ऐसा करना आपके कार्य की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
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(4) दूसरे  व्यक्ति की बात को पूरी तरह सुने। अपनी बात को संक्षेप में परन्तु  तथ्यात्मक व  प्रभावशाली तरीके से कहें।
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(5) किसी व्यक्ति को तब तक बुरा मत समझो जब  तक वह बुरा सिद्ध न हो जाये।                                           =====                                              
(6) दूसरो  के अनुभवों से सीखिए परन्तु अपनी मौलिकता की छाप आपके कार्य पर रहनी चाहिये।आपके द्वारा किया गए कार्य थोडा अलग लगना चाहिये।                                                                                                    =====                    
(7) कुछ व्यक्तियों को हमेशा के लिए और सब व्यक्तियों को कुछ समय के लिए मूर्ख  बनाया जा सकता है परन्तु सब व्यक्तियों को हमेशा के लिए मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है। इसलिये झूठ या कुतर्क का सहारा मत  लो। यह आपके कमजोर व्यक्तित्त्व का संकेतक माना जाएगा।
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(8)किसी भी चीज़ की अति से बचो ,चाहे इस अति का सम्बन्ध अच्छाई से हो चाहे बुराई से हो।
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(9) मन:स्थिति संतुलित और दृष्टिकोण व्यवहारिक रखो।
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(10) रातोंरात आपके जीवन में चमत्कार हो जाएगा और आप धनवान तथा स्मृद्धि शाली बन जाओगे , ऐसी कल्पना से बचो। क्योकि ऐसी कल्पना व्यक्ति के मन में दूसरो की वस्तु-धन आदि हड़पने की लालसा व बेईमानी  करने  की इच्छा अंकुरित करती है जो उसके जीवन की सम्पूर्ण गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
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(11) अनुचित तरीके से कमाया हुआ धन गलत मार्ग की ओर ले जाता है। दूसरो को दुखी करके प्राप्त किया हुआ धन कल्याणकारी नहीं हो सकता भले ही थोड़े समय के लिये हमारे मन को राजी कर दे।
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(12) जो आपका है वह जाएगा नहीं और जो चला गया वह आपका नहीं था। इसे परमसत्ता के द्वारा निर्धारित व्यवस्था समझ कर जो चला गया उसके प्रति मन में उदासी या अप्रसन्नता लाने से बचे, क्योंकि  कई बातें व्यक्ति के नियंत्रण में नहीं होती हैं ।
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(13) प्रकृति का विस्तार अनंत है। यदि कोई व्यक्ति बहुत कुछ प्राप्त कर ले फिर भी किसी न किसी वस्तु का अभाव रहेगा। अत: बुद्धिमान मनुष्य अधिक पाने का रचनात्मक प्रयास तो  करता है, परन्तु प्राप्त वस्तुओं  का ही उत्तम उपयोग करता है न कि अप्राप्त वस्तुओं की चाहत में दुखी होता है।
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(14) अपनी सफलता से सीखें ताकि  आप उन्हें दोहरा सकें, अपनी असफलता व गलतियों से सीखे। ताकि ऐसी गलतियाँ दुबारा न हो।
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(15) अपने जीवन में हमेशा ही अच्छा घटित होने की उम्मीद करे फिर भी कुछ विपरीत घटित हो जाए तो जाए तो उसे ईश्वर द्वारा हमारे हित के लिए घटित  किया हुआ  माने। हमारा अच्छा-बुरा हमारे बजाय ईश्वर ज्यादा जानता है।
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(16) स्वयं को आवश्यकता से अधिक आलोचनात्मक होकर नही देखे। अपने मजबूत बिन्दुओ का विशलेषण   करे और कमियों को दूर करने का प्रयास करे परन्तु कमियो या कमजोरियों पर ज्यादा जोर देकर कुंठित होने से बचे।
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(17) दिल का काम दिमाग से और दिमाग का काम दिल से मत करो।
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(18)परिवार में छोटे-बड़े का ध्यान रखते हुए आचरण करे।  अपनी ओर  से सोहार्द बनाये रखने की पहल करे। छोटी- छोटी अप्रिय बातो व् घटनाओं को अधिक तूल नही देवे। परिवार की नीव विश्वास पर टिकी है। हर बात को संदेह की दृष्टि से नही देखे। स्नेह  जीवन का आधार है यह  जीने  को सार्थक और आनंददायक बनाता है। यदि कोई घटना, कोई बात, कोई परिस्थिति अप्रिय लगे तो उस चतुराई के साथ एक ख़ूबसूरत मोड़  दे दे।
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(19) मजाक करने और मजाक बनाने में अंतर है।
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(20) अपनी स्थिति पर संतोष करो, दूसरो के उत्कर्ष को देखकर मुदित होओ, दूसरों को दुखी देखकर मन मे करुणा का भाव लाओ, जो आपके प्रति विरोधी भाव रखते है, आप उनके प्रति उपेक्षा का भाव रखो।
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(21) कुछ व्यक्तियों को हमेशा के लिये मूर्ख बनाया जा सकता है परन्तु सब व्यक्तियों को हमेशा के लिए मूर्ख नही बनाया जा सकता है। इसलिए झूठ या कुतर्क सहारा मत लो। यह आपके व्यक्तित्व की कमजोरी माना जाएगा।
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(22) सर्वश्रेष्ठ विचार की प्रतीक्षा मत करो, श्रेष्ठ विचार पर अमल करो, इससे श्रेष्ठ और सर्वश्रेष्ठ स्वयं पीछे आयेंगे।
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(23) जीवन के मार्ग में जो भी खुशिया मिले उनसे खुश रहिये। ये छोटी छोटी खुशियां ही एक दिन बड़ी ख़ुशी बन जायेंगी।
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(24) आशा, उमंग , उत्साह और उल्लास से भरा हुआ जीवन जीओ। इन भावनाओं की झलक आपके चेहरे, कार्य, व्यवहार व् आचरण पर भी दिखनी चाहिए।
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(25) संकट के समय धैर्य और साहस से काम लें , पुरुषार्थ की बात सोचें  और कठिनायों  से  लड़ने  और उन्हें  परास्त  करने  का  चाव  रखें। ऐसे समय पर ईश्वर पर विश्वास  रखें। .
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(1.1.8) The Best Season of the Year

 वर्ष की श्रेष्ठ ऋतु कौन सी है ?
एक बार राजस्थान के किसी एक कस्बे में गोविन्द नारायण नामक सेठ (धनवान व्यापारी )रहता था। उसके एक पुत्र था। जब उसका पुत्र विवाह योग्य उम्र तक पहुंचा तो उस व्यापारी ने उसके विवाह के लिए गुण वान व सुन्दर लड़की की तलाश शुरू की।जब भी कोई व्यक्ति उस के पुत्र के  विवाह का प्रस्ताव लाता तो व्यापारी प्रस्तावक की बेटी से एक प्रश्न पूछता - "वर्ष की सबसे  श्रेष्ठ ऋतु कौन सी है?" प्रत्येक लड़की इस प्रश्न का भिन्न उत्तर देती और उसका कारण भी बताती।परन्तु सेठ को कोई भी उत्तर संतुष्ट नहीं कर सका।
एक दिन हरि  प्रकाश नामक एक अन्य व्यापारी अपने परिवार के साथ कहीं जा रहा था।रात्रि हो जाने से उसने उस कस्बे में रात्रि गुजारना चाहा जहाँ सेठ गोविन्द नारायण रहता था। गोविन्द नारायण ने सेठ हरि प्रकाश को अपनी हवेली में रात्रि बिताने के लिए निवेदन किया। 
गोविन्द नारायण ने हरि प्रकाश की अच्छी आव भगत की।सेठ हरि प्रकाश के भी एक पुत्री थी।वार्ता लाप के दौरान हरि प्रकाश ने अपनी पुत्री का विवाह सेठ गोविन्द नारायण के पुत्र के साथ  करने की इच्छा प्रकट की।गोविन्द नारायण ने वही प्रश्न उसकी बेटी से भी पूछा -"वर्ष की श्रेष्ठ ऋतु कौन सी है?" लड़की ने उत्तर दिया -"यदि परिवार में शांति हो, परिवार के छोटे सदस्य परिवार के बड़े सदस्यों का सम्मान  करते हों और उनकी  आज्ञा पालन करते हों, और परिवार के बड़े सदस्य छोटों  के प्रति स्नेह की भावना रखते हों,परिवार के सभी सदस्यों में आपसी सहयोग की भावना हो तो उस परिवार और उसके सदस्यों के लिए वर्ष की प्रत्येक ऋतु श्रेष्ट है क्योंकि ऐसे वातावरण में ही लक्ष्मी निवास करती है।"सेठ गोविन्द नारायण लड़की के उत्तर से प्रभावित हुआ और उसके पुत्र के साथ उस लड़की के विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।    

(1.1.7) Kartvya / Duty is more important

 कर्तव्य ज्यादा महत्व पूर्ण है 

किसी एक गांव में एक धनवान भेड़ पालक रहता था।एक बार उसने दो लडकों को भेड़ें चराने के लिए रख लिया। उसने भेड़ों को दो समूह में विभाजित कर लिया और प्रत्येक को एक एक झुण्ड चराने के लिए दे दिया .कुछ दिन बाद उसने देखा कि दोनों ही समूह में कुछ भेड़ें मर गई हैं और कुछ अन्य दुबली हो गई हैं।भेड मालिक ने दोनों ही लडकों को दोषी पाया।
पता लगा की दोनों ही लडकें प्रतिदिन सुबह भेड़ों को अपने साथ ले जाते थे लेकिन उन्हें (भेड़ों को ) केवल इधर उधर भटकने देते थे और वे अपने व्यसन जिसके वे आदी थे, में लग जाते थे।उन में से एक को गपशप करने की आदत थी। इसलिये वह दूसरे लड़कों के साथ बैठ जाता था  और गपशप  लगाता रहता था।भेड़े आस पास के क्षेत्र में इधर उधर घूमती रहती थी चाहे वहां चरने के लिए पर्याप्त चारा हो या नहीं हो।यही बात भेड़ो के दूसरे समूह के साथ भी होती थी।दूसरे समूह को चराने वाला लड़का अपना समय पूजा पाठ और धार्मिक कार्य करने में लगाता था और भेड़ों की तरफ ध्यान नहीं देता था।
 भेड़ पालक ने उन दोनों के विरूद्ध शिकायत दर्ज कराई।दोनों को गाँव के न्यायाधीश के कोर्ट में उपस्थित किया गया।यद्यपि  दोनों के ही कार्यों (व्यसन )में गुणवत्ता का बहुत अधिक अंतर था तो भी दोनों को ही उनके सौंपे गये कर्तव्य की अवहेलना का दोषी पाये जाने पर समान सजा दी गई।
न्यायाधीश ने निर्णय देते हुए कहा,"कर्तव्य भाव के बिना जो कुछ भी किया जाता है वह व्यसन ही है,चाहे वह व्यसन गप्पे लगाने  का हो चाहे पूजा पाठ करने का हो। दोनों ही व्यसन सामान रूप से सजा योग्य हैं क्योंकि प्रत्येक में कर्तव्य पालन की पूर्ण रूप से उपेक्षा हुई है।   
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(5.1.5) Good son / Achchha Putra kaun hota hai ?

Achchhe putra ke Lakshan अच्छे पुत्र के लक्षण
> जिस प्रकार अकेला चन्द्रमा ही सम्पूर्ण अंधकार को दूर कर देता है जिसे अनगिनत तारे मिलकर भी दूर नहीं कर सकते। उसी प्रकार गुण रहित  सैंकड़ों मूर्ख पुत्रों की अपेक्षा एक गुणवान पुत्र ही श्रेष्ठ होता है.
(चाणक्य नीति)
> उस पुत्र को धिक्कार है, जो समर्थ होते हुए भी पिता के मनोरथ पूर्ण करने में सहयोग नहीं करता है। ऐसा पुत्र  जो पिता की चिंता को दूर नहीं कर सकता, उस पुत्र के जन्म लेने का क्या लाभ ?
(देवी भागवत)
> श्रेष्ठ पुत्र वही है, जो माता-पिता का भक्त होता है, श्रेष्ठ पिता वह है जो अपने पुत्र-पुत्रियों का उत्तम पालन-पोषण करता है, श्रेष्ठ मित्र वह है जिस पर पूर्ण विश्वास किया जा सके और श्रेष्ठ पत्नी वह है जिससे सुख प्राप्त हो।
(चाणक्य)
> आदर्श पुत्र वह है, जो माता-पिता की आज्ञा मानता है, उनका हित चाहता है, उनके अनुकूल आचरण करता है तथा उनके प्रति पुत्रोचित व्यवहार करता है।
(आदिपर्व - महाभारत)
> सुन्दर व सुगन्धित पुष्पों से युक्त केवल एक वृक्ष ही सम्पूर्ण वन को सुगन्धित बना देता है, ठीक उसी प्रकार सुपुत्र से पूर्ण एक ही कुल समाज में आंनद और उल्लास का सृजन करके उसे उन्नतिशील बना देता है।
(चाणक्य नीति)
> अधिक अवगुणी पुत्रों की अपेक्षा एक ही गुणी तथा ज्ञानी पुत्र उत्तम है, जिसके आश्रय से सम्पूर्ण परिवार सुख भोगता है।
(चाणक्य नीति )
> जिस प्रकार स्वयं आग से जलता हुआ एक ही सूखा वृक्ष सम्पूर्ण वन को जला देता है, उसी प्रकार एक ही कुपुत्र अपने वंश के नाश का कारण बनता है।  
(चाणक्य नीति)
> मूर्ख पुत्र की अपेक्षा पुत्रहीन होना ही श्रेष्ठ है।
(देवी भागवत)