Achchhe putra ke Lakshan अच्छे पुत्र के लक्षण
> जिस प्रकार अकेला चन्द्रमा ही सम्पूर्ण अंधकार को दूर कर देता है जिसे अनगिनत तारे मिलकर भी दूर नहीं कर सकते। उसी प्रकार गुण रहित सैंकड़ों मूर्ख पुत्रों की अपेक्षा एक गुणवान पुत्र ही श्रेष्ठ होता है.
(चाणक्य नीति)
> उस पुत्र को धिक्कार है, जो समर्थ होते हुए भी पिता के मनोरथ पूर्ण करने में सहयोग नहीं करता है। ऐसा पुत्र जो पिता की चिंता को दूर नहीं कर सकता, उस पुत्र के जन्म लेने का क्या लाभ ?
(देवी भागवत)
> श्रेष्ठ पुत्र वही है, जो माता-पिता का भक्त होता है, श्रेष्ठ पिता वह है जो अपने पुत्र-पुत्रियों का उत्तम पालन-पोषण करता है, श्रेष्ठ मित्र वह है जिस पर पूर्ण विश्वास किया जा सके और श्रेष्ठ पत्नी वह है जिससे सुख प्राप्त हो।
(चाणक्य)
> आदर्श पुत्र वह है, जो माता-पिता की आज्ञा मानता है, उनका हित चाहता है, उनके अनुकूल आचरण करता है तथा उनके प्रति पुत्रोचित व्यवहार करता है।
(आदिपर्व - महाभारत)
> सुन्दर व सुगन्धित पुष्पों से युक्त केवल एक वृक्ष ही सम्पूर्ण वन को सुगन्धित बना देता है, ठीक उसी प्रकार सुपुत्र से पूर्ण एक ही कुल समाज में आंनद और उल्लास का सृजन करके उसे उन्नतिशील बना देता है।
(चाणक्य नीति)
> अधिक अवगुणी पुत्रों की अपेक्षा एक ही गुणी तथा ज्ञानी पुत्र उत्तम है, जिसके आश्रय से सम्पूर्ण परिवार सुख भोगता है।
(चाणक्य नीति )
> जिस प्रकार स्वयं आग से जलता हुआ एक ही सूखा वृक्ष सम्पूर्ण वन को जला देता है, उसी प्रकार एक ही कुपुत्र अपने वंश के नाश का कारण बनता है।
(चाणक्य नीति)
> मूर्ख पुत्र की अपेक्षा पुत्रहीन होना ही श्रेष्ठ है।
(देवी भागवत)
> जिस प्रकार अकेला चन्द्रमा ही सम्पूर्ण अंधकार को दूर कर देता है जिसे अनगिनत तारे मिलकर भी दूर नहीं कर सकते। उसी प्रकार गुण रहित सैंकड़ों मूर्ख पुत्रों की अपेक्षा एक गुणवान पुत्र ही श्रेष्ठ होता है.
(चाणक्य नीति)
> उस पुत्र को धिक्कार है, जो समर्थ होते हुए भी पिता के मनोरथ पूर्ण करने में सहयोग नहीं करता है। ऐसा पुत्र जो पिता की चिंता को दूर नहीं कर सकता, उस पुत्र के जन्म लेने का क्या लाभ ?
(देवी भागवत)
> श्रेष्ठ पुत्र वही है, जो माता-पिता का भक्त होता है, श्रेष्ठ पिता वह है जो अपने पुत्र-पुत्रियों का उत्तम पालन-पोषण करता है, श्रेष्ठ मित्र वह है जिस पर पूर्ण विश्वास किया जा सके और श्रेष्ठ पत्नी वह है जिससे सुख प्राप्त हो।
(चाणक्य)
> आदर्श पुत्र वह है, जो माता-पिता की आज्ञा मानता है, उनका हित चाहता है, उनके अनुकूल आचरण करता है तथा उनके प्रति पुत्रोचित व्यवहार करता है।
(आदिपर्व - महाभारत)
> सुन्दर व सुगन्धित पुष्पों से युक्त केवल एक वृक्ष ही सम्पूर्ण वन को सुगन्धित बना देता है, ठीक उसी प्रकार सुपुत्र से पूर्ण एक ही कुल समाज में आंनद और उल्लास का सृजन करके उसे उन्नतिशील बना देता है।
(चाणक्य नीति)
> अधिक अवगुणी पुत्रों की अपेक्षा एक ही गुणी तथा ज्ञानी पुत्र उत्तम है, जिसके आश्रय से सम्पूर्ण परिवार सुख भोगता है।
(चाणक्य नीति )
> जिस प्रकार स्वयं आग से जलता हुआ एक ही सूखा वृक्ष सम्पूर्ण वन को जला देता है, उसी प्रकार एक ही कुपुत्र अपने वंश के नाश का कारण बनता है।
(चाणक्य नीति)
> मूर्ख पुत्र की अपेक्षा पुत्रहीन होना ही श्रेष्ठ है।
(देवी भागवत)