This is the Difference यही मुख्य अंतर है
तानसेन के गुरु,हरिदास के संगीत की विशेषताओं को सुनकर अकबर ने इसे सुनने की तीव्र इच्छा की।इसलिए वह स्वामी के संगीत को सुनने के लिए तानसेन के साथ उनके आश्रम पर गया ।वे स्वामी हरिदास का संगीत सुनने के लिए कई दिनों तक उनके आश्रम में रुके।लेकिन स्वामी जी ने नहीं गाया क्योंकि वे तभी गाते थे,जब उनकी इच्छा होती थी।फिर एक दिन तानसेन ने जानबूझ कर अशुद्ध स्वर छेड़ दिया।स्वामी जी को यह सहन नहीं हुआ और वे स्वयं गाने लगे।
उन्होंने वही गीत ठीक प्रकार से गाया,तरंग ने आकर उन्हें आवृत्त कर लिया और वे स्वयं को उस संगीत में भूल गए जो पृथ्वी और आकाश पर छा गया।अकबर और तानसेन ने स्वयं को स्वर माधुर्य और संगीत के आकर्षण में भुला दिया।
यह एक अद्वितीय अनुभूति थी।जब संगीत रुका,अकबर तानसेन की ओर मुड़ा और बोला,"तुम कहते हो तुमने इस संत से संगीत सीखा है और तब भी तुम इसका सम्पूर्ण जीवंत आकर्षण खो चुके मालूम पड़ते हो।तुम्हारा संगीत इस मर्मस्पर्शी संगीत के समक्ष भूसा मात्र प्रतीत होता है।
"यह सत्य है,श्रीमान,"तानसेन ने कहा,"यह सत्य है कि मेरा संगीत मेरे गुरु की जीवंत स्वरसंगति और माधुर्य की समक्ष भावशून्य और निर्जीव है।परन्तु यहाँ यह अंतर है कि मैं सम्राट के आदेश पर गाता हूँ,परन्तु मेरे गुरु किसी व्यक्ति के आदेश पर नहीं गाते हैं, वे केवल तभी गाते हैं जबकि उनके अंतरतम की आत्मा से प्रेरणा प्राप्त होती है। इसी से सारा अंतर है।