Monday 12 October 2015

(1.1.7) Tulsi Das ke Dohe (Dohe of Tulsidas) in Hindi

Tulsi Das ke Dohe (तुलसीदास के दोहे ) हिंदी में

(For English translation CLICK HERE )
गोस्वामी तुलसीदास भारत के ऐसे संत महापुरुष हैं , जिनके आविर्भाव से भगवद्भक्ति की धारा प्रवाहित हुई है। उन्हें महान कवि वाल्मीकि का अवतार माना जाता है। उनके द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस नैतिक शिक्षा का आदर्श ग्रन्थ है।
> रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिअ न ताहु। 
अजहुँ देत दुःख रबि ससिहि सिर अवसेषित राहु। 
(रामचरितमानस 1/170)
अर्थ - तेजस्वी शत्रु अकेला भी हो, तो भी उसे छोटा नहीं समझना चाहिये। जिस राहु का मात्र सर बचा था, वह राहु आज तक सूर्य और चन्द्रमा को दुःख देता है।
> सचिव, बैद, गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस। 
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगहीं नास। 
(रामचरितमानस 5 /37)
अर्थ - मन्त्री, वैद्य और गुरु- ये तीन यदि किसी भय या आशा से (हित की बात नहीं कह कर) प्रिय बोलते हैं (ठकुर सुहाती कहने लगते हैं), तो (क्रमशः) राज्य,शरीर और धर्म - इन तीनों का शीघ्र ही नाश हो जाता है।
> प्रीति, बिरोध समान सन करिअ नीति असि आहि। 
जौं मृगपति बध मेडु कन्हि भल कि कहइ कोउ ताहि। 
(रामचरितमानस 6 /23 ग)
अर्थ - प्रीति और वैर बराबर वालों से ही करना चाहिये, नीति ऐसी ही है। सिंह यदि मेंढकों को मारे तो क्या उसे कोई भला कहेगा?
> रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि। 
(रामचरितमानस 3 /21)
अर्थ - शत्रु, आग, रोग, पाप, स्वामी और सर्प को कभी छोटा नहीं समझना चाहिये।  समय पाकर ये सभी विनाश का कारण बन सकते हैं।
> मातु पिता गुरु स्वामि सिख सिर धरि करहिं सुभायँ। 
लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर नतरु जनमु जग जायँ।
(रामचरितमानस 2 /70)
अर्थ - जो लोग माता, पिता, गुरु और स्वामी की शिक्षा को स्वाभाविक ही सिर चढ़ा कर उनका पालन करते हैं, उन्होंने ही जन्म लेने का लाभ पाया है; नहीं तो जगत में जन्म लेना व्यर्थ ही है।
> गगन चढइ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा।
साधु असाधु सदन सुक सारीं।  सुमरहिं राम देहिं गनि गारीं।
(रामचरितमानस १/७/९-१० )
अर्थ - पवन के संग से धूल आकाश की ओर ऊँची चढ़ जाती है और वही धूल नीचे की ओर बहने वाले जल के संग से कीचड में मिल जाती है। संगति के प्रभाव से ही व्यक्ति उच्चता या निम्नता की स्थिति को प्राप्त होता है। इसी प्रकार साधु के घर पलने वाले तोता-मैना राम-राम का सुमिरन करते हैं और असाधु के घर पलने वाले तोता-मैना गिन -गिन कर गालियाँ देते हैं। यह सब अच्छी और बुरी संगति का परिणाम है।
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