Wednesday 14 October 2015

(1.3.4) Ganesh Smaran / Pratah Smaran Ganesh Shlok

प्रातः स्मरण गणेश श्लोक

प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं 
सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम्। 
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्ड दण्ड-
माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्ध्यम्। 
अर्थ - अनाथों के बंधु, सिन्दूर से शोभायमान दोनों गण्डस्थल वाले, प्रबल विघ्न का नाश करने में समर्थ एवं इन्द्रादि देवों में नमस्कृत श्री गणेश का मैं प्रातः काल स्मरण करता हूँ।
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