Wednesday 26 July 2023

(6.5.7) नारायण कवच के लाभ Benefits of Narayan Kavach / Shri Narayan Kavach Ke Laabh

 नारायण कवच के लाभ Benefits of Narayan Kavach / Shri Narayan Kavach Ke Laabh

नारायण कवच के लाभ

नारायण कवच का परिचय –

श्रीनारायण कवच श्रीमद्भागवत् पुराण के छठे स्कन्द के आठवें अध्याय में है. यह कवच भगवान् विष्णु को समर्पित स्तोत्र है. इस स्तोत्र में अपनी रक्षा के लिए भगवान् विष्णु से प्रार्थना की गयी है. इस सम्बन्ध में एक प्रसंग के अनुसार -

एक बार राजा परीक्षित ने श्री शुकदेवजी से पूछा – भगवन् ! देवराज इन्द्र ने जिससे सुरक्षित होकर शत्रुओं की चतुरंगिणी सेना को खेल खेल में अनायास ही जीत कर त्रिलोकी की राजलक्ष्मी का उपभोग किया, उस नारायण कवच को मुझे सुनाइए और यह भी बताइये कि उन्होंने उससे सुरक्षित होकर रणभूमि में किस प्रकार आक्रमणकारी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की.

इस पर श्री शुकदेव जी कहा – हे परीक्षित ! जब देवताओं ने विश्वरूप को अपना पुरोहित बना लिया, तब देवराज इन्द्र के प्रश्न करने पर विश्वरूप ने उन्हें नारायण कवच का उपदेश दिया और कहा कि भय का अवसर उपस्थित होने पर नारायण कवच धारण करके अपने शरीर की रक्षा कर लेनी चाहिए.

नारायण कवच का महत्व और प्रभाव –

नारायण कवच के महत्व और इसके प्रभाव के सन्दर्भ में शुकदेव जी ने देवराज इन्द्र को एक कथा सुनाई थी जो इस प्रकार है –

“प्राचीनकाल की बात है, एक कौशिक गौत्र के ब्राह्मण ने इस विद्या को यानि श्री नारायण कवच को धारण करके योग धारणा से अपना शरीर मरूभूमि में त्याग दिया. उस ब्राह्मण का अस्थिपंजर उस मरुभूमि पर पड़ा हुआ था. एक दिन गन्धर्वराज चित्ररथ अपनी स्त्रियों के साथ विमान पर बैठ कर जा रहे थे. जैसे ही  उनका विमान उस ब्राहमण के अस्थिपन्जर के ऊपर से गुजरने लगा, तभी वे विमान सहित आकाश से पृथ्वी पर गिर पड़े. इस घटना से उनके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रही. तब वालखिल्य मुनियों ने चित्ररथ को बताया कि यह नारायण कवच के धारण करने का प्रभाव है. और उन्होंने यह सलाह भी दी कि इस समस्या का समाधान पाने के लिए उन्हें उस ब्राह्मण की अस्थियों को सरस्वती नदी में प्रवाहित करनी होगी. तब गन्धर्वराज चित्ररथ ने उस ब्राह्मण की हड्डियों को ले जाकर पूर्ववाहिनी सरस्वती नदी में प्रवाहित कर दिया और फिर स्नान करके वे अपने लोक में चले गए.

नारायण कवच के लाभ –

इस कवच का पाठ करने से पाठकर्ता आत्मविश्वास से भर जाता है, अपने आप को सुरक्षित अनुभव करता है और भय रहित हो जाता है. नकारात्मक विचारों और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है. दृश्य और अदृश्य शत्रुओं पर विजय पा लेता है.   

इस कवच के छत्तीसवें श्लोक के अनुसार जो साधक इस नारायण कवच को धारण करता है यानि श्रृद्धा और विश्वास के साथ इसका पाठ करता है, वह साधक जिसको भी अपने नेत्रों से देख लेता है अथवा पैर से छू देता है, वह तत्काल समस्त भयों से मुक्त हो जाता है.

सेंतीसवें श्लोक के अनुसार जो व्यक्ति इसे धारण कर लेता है, उसे राजा, डाकू, प्रेत, पिशाच और बाघ आदि हिंसक जीवों से कभी भी किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता है.

इकतालीसवें श्लोक के अनुसार जो पुरुष इस नारायण कवच को सुनता है और जो आदर पूर्वक इसका पाठ करता है, उसका सभी आदर करते हैं और वह सब प्रकार के भयों से मुक्त हो जाता है.

श्लोक 42 के अनुसार इस वैष्णवी विद्या को प्राप्त करके इसके प्रभाव से इन्द्र ने असुरों को जीत लिया और वे त्रैलोक्य लक्ष्मी का उपभोग करने लगे.