Wednesday 19 July 2023

(6.11.17) रामायण का पहला श्लोक Ramayan Ka Pahala Shlok Kaunasa Hai

रामायण का पहला श्लोक Ramayan Ka Pahala Shlok Kaunasa Hai

रामायण का पहला श्लोक

वाल्मीकिजी द्वारा रचित रामायण के बालकाण्ड के पहले सर्ग के अनुसार वाल्मीकिजी देवर्षि नारद जी पूछते हैं कि इस समय इस संसार में गुणवान, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी, दृढव्रत, प्राणीमात्र के हितेषी, विद्वान्, समर्थ, धैर्यवान, क्रोध को जीतने वाले, तेजस्वी, ईर्ष्याशून्य और युद्ध में क्रुद्ध होने पर देवताओं को भी भयभीत करने वाले, कौन हैं ?

यह सुनकर नारदजी कहने लगे कि हे मुनि आपने जिन गुणों का उल्लेख किया है, ऐसे गुणों से युक्त इक्ष्वाकु के वंश में उत्पन्न श्री रामचन्द्रजी हैं.

इसके बाद उन्होंने श्रीरामचंद्रजी के गुणों का वर्णन किया और रामकथा का संक्षिप्त परिचय दिया.

(रामायण के बालकाण्ड के दूसरे सर्ग के अनुसार) रामकथा को संक्षेप में सुनाकर देवर्षि नारदजी आकाशमार्ग से देवलोक चले गए. नारदजी के जाने के बाद वाल्मीकिजी अपने शिष्य भरद्वाज को साथ लेकर स्नान करने हेतु तमसा नदी के तट पर पहुँचे. नदी के समीप ही उन्होंने मीठी बोली बोलने वाले वियोगशून्य अर्थात् असावधान एवं रतिक्रिया में लिप्त क्रौंच पक्षी यानि सारस पक्षी के एक जोड़े को देखा. तभी पक्षियों के शत्रु एक बहेलिये ने उस जोड़े में से नर क्रौंच पक्षी को मार दिया. तब मादा क्रौंच पक्षी ने अपने नर को रक्त से भरे हुए और पृथ्वी पर छटपटाते हुए देख कर करूण स्वर में विलाप करने लगी.

इस पाप पूरित हिंसा कर्म और विलाप करती हुई मादा क्रौंच पक्षी को देख कर वाल्मीकिजी के मन में करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से अनायास ही श्लोक के रूप में ये शब्द निकल पड़े –

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः

यत्क्रौंचमिथुनादेक मवधीः काममोहितम्

अर्थ – हे बहेलिये, तुमने इस कामातुर नर पक्षी को मारा है, इसलिये अनेक वर्षों तक इस वन में मत आना और तुम्हें कभी भी सुख शान्ति नहीं मिले.

वाल्मीकिजी के दुःख और क्रोध के कारण उनके मुख से अनायास ही निकला यह श्लोक संस्कृत का पहला श्लोक माना जाता है. इस श्लोक को आदि श्लोक भी कहा जाता है. इसी श्लोक के कारण आदि कवि वाल्मीकिजी को रामायण जैसे महाग्रंथ की रचना करने की प्रेरणा मिली थी.