Saturday 29 July 2023

(6.2.10) स्यमन्तक मणि और श्री कृष्ण पर लगे कलंक की कथा (Syamantak Mani Story)

 स्यमन्तक मणि और श्री कृष्ण पर लगे कलंक की कथा (Syamantak Mani Story)

स्यमन्तक मणि और श्री कृष्ण पर लगे कलंक की कथा

एक बार चन्द्रमा ने गणेश जी पर हँस कर उनका उपहास किया था इससे गणेश जी ने कुपित होकर चन्द्रमा को शाप दे दिया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जो भी उसे यानि चन्द्रमा को देखेगा, तो उस व्यक्ति को पाप, हानि, मूढ़ता और कलंक का सामना करना पड़ेगा.

भगवान् श्री कृष्ण पर भी चोरी और हत्या का आरोप लगा था. जब उन्होंने अपने ऊपर लगे कलंक का कारण पूछा तो नारद जी ने बताया कि यह सब आपने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चन्द्र दर्शन किया था इसलिए हुआ है.

इस सम्बन्ध में श्रीमद्भागवत के दसवें स्कन्द के अध्याय 56 व 57 में एक कथा इस प्रकार है –

श्री कृष्ण की द्वारकापुरी में सत्राजित नामक व्यक्ति सूर्य का भक्त था. उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य ने उसे स्यमन्तक मणि दे दी. यह मणि सूर्य के समान प्रकाश वाली थी और प्रतिदिन आठ भार सोना देती थी तथा जहाँ यह पूजित होकर रहती थी, वहाँ दुर्भिक्ष, महामारी, ग्रहपीड़ा, सर्प भय आदि कुछ भी अशुभ घटना नहीं घटती थी. एक बार प्रसंगवश श्री कृष्ण ने सत्राजित से कहा कि तुम यह मणि राजा उग्रसेन को दे दो. लेकिन उसने श्री कृष्ण की सलाह को नहीं मानी.

एक दिन सत्राजित के भाई प्रसेन ने उस स्यमन्तक मणि को अपने गले में धारण कर ली और घोड़े पर सवार होकर शिकार के लिए वन में चला गया. वहाँ एक शेर ने सत्राजित को मार दिया और उस मणि को छीन लिया. उस शेर से उस मणि को जाम्बवान ने ले ली.

प्रसेन के लौट कर घर नहीं आने पर सत्राजित को संदेह हुआ और वह कहने लगा कि बहुत सम्भव है कृष्ण ने मेरे भाई प्रसेन को मार डाला और उससे स्यमन्तक मणि ले ली. जब श्री कृष्ण को अपने ऊपर लगे इस कलंक का पता चला तो वे प्रसेन की खोज में वन में गए. वहाँ वे जाम्बवान की गुफा में गए और मणि लेने का प्रयास किया तो जाम्बवान उनसे युद्ध करने लगा. श्री कृष्ण और जाम्बवान के बीच 21 दिन तक घोर युद्ध हुआ. अंत में जाम्बवान ने भगवान् कृष्ण को पहचान लिया. तब श्री कृष्ण ने जाम्बवान से कहा कि मैं तो इस मणि को लेने के लिया ही तुम्हारी गुफा में आया हूँ. मैं इस मणि को ले जाकर मेरे ऊपर लगे झूठे कलंक को मिटाना चाहता हूँ. भगवान् के ऐसा कहने पर जाम्बवान ने वह मणि श्री कृष्ण को दे दी और अपनी पुत्री जाम्बवती का विवाह भी उनके साथ कर दिया.

बाद में भगवान् ने सत्राजित को महाराज उग्रसेन के पास राजसभा में बुलवाया और जिस प्रकार स्यमन्तक मणि प्राप्त हुई थी, इस कथा को सुनाकर वह मणि सत्राजित को दे दी. इस प्रकार उन्होंने अपने ऊपर लगे झूठे कलंक को मिटाया.

यदि किसी को भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चन्द्र दर्शन हो जाये तो किसी अनहोनी या किसी कलंक से बचने के लिए उसे यह कथा पढ़नी या सुननी चाहिए.