Saturday 5 August 2023

(6.3.7) सप्तश्लोकी दुर्गा - मनोकामना पूर्ति हेतु Saptshloki Durga with Hindi Translation

 सप्तश्लोकी दुर्गा - मनोकामना पूर्ति हेतु Saptshloki Durga with Hindi Translation

सप्तश्लोकी दुर्गा

सप्त श्लोकी दुर्गा में सात श्लोक हैं ,  जिनमें  दिव्य शक्तियों से युक्त देवी दुर्गा की प्रार्थना है।  जब कोई व्यक्ति विश्वास , निष्ठा और एकाग्रता के साथ इन श्लोकों  का पाठ करता है तो उस उपासक को देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उसे अपने शुभ उद्देश्य में सफलता मिलती है।देवी कृपा से उसे धन सम्पदा मिलती है। उसका पारिवारिक जीवन सुख शांति मय रहता है। उसे बिमारियों और दुविधाओं से छुटकारा मिलता है तथा जीवन प्रसन्नता  पूर्वक व्यतीत होता है।

श्लोक पठन प्रक्रिया :-

प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त हो कर किसी शांत स्थान पर ऊनी आसन पर बैठ जायें।देवी दुर्गा का चित्र अपने सामने रखें। आँखें  बंद करके देवी का ध्यान करें व भावना करें कि वह  दिव्य शक्तियों  से युक्त है और अपने भक्तों की सद इच्छा की पूर्ति करती है और उनके कष्टों को दूर करती है। मैं ऐसी शक्ति संपन्न  देवी दुर्गा से प्रार्थना करता हूँ कि  वे मुझे प्रसन्नता , बुद्धि ,शांति , स्वास्थ्य  व सम्पन्नता प्रदान करें। इस ध्यान व प्रार्थना के बाद निम्नांकित श्लोकों का तीन माह तक ग्यारह या सात या पाँच बार निष्ठा पूर्वक पाठ करें। ( चारों नवरात्रियों में भी इन का पाठ किया जा सकता है।)

1. ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।

बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ।।

2. दुर्गे स्मृता हरसि भीति मशेषजन्तो: ,

स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।

दारिद्र्य दुःख भय हारिणि का त्वदन्या ,

सर्वोपकार करणाय सदार्द्र चित्ता।।

3.सर्व मंगल मंगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि  नारायणि नमोSस्तु ते ।।

4. शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे।

सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोSस्तु ते।।

5.सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते ।

भयेभ्य स्त्राहि नो  देवि दुर्गे देवि नमोSस्तु ते।।

6.रोगानशेषानपहंसि तुष्टा ,

रुष्टा तु कामान सकलानभीष्टान ।

त्वामा श्रितानां न विपन्नराणां

त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।

7.सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्य स्याखिलेश्वरि ।

एवमेव त्वया कार्य मस्म द्वैरिविनाशनं।।

II इति श्री सप्त श्लोकी दुर्गा II 

सप्तश्लोकी दुर्गा (हिन्दी में)

ॐ इस दुर्गासप्तश्लोकी स्तोत्र मन्त्र के नारायण ऋषि हैं, अनुष्टुप छन्द है, श्रीमहाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवता हैं, श्री दुर्गा की प्रसन्नता के लिये सत्पश्लोकी दुर्गापाठ में इसका विनियोग किया जाता है.

वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियों के भी चित्त को बल पूर्वक खींचकर मोह में डाल देती हैं. (1)

माँ दुर्गे, आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं. दुःख, दरिद्रता और भय हरने वाली देवि, आप के सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सब का उपकार करने के लिए सदा ही दयार्द्र रहता हो. (2)

नारायणी, तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो. कल्याण दायिनी शिवा हो. सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो. तुम्हे नमस्कार है. (3)

शरण मे आये हुए दीनों एवं पीड़ितों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सबकी पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवि, तुम्हें नमस्कार है. (4)

सर्व स्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि, सब भयों से हमारी रक्षा करों; तुम्हें नमस्कार है. (5)

देवि, तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो. जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं. तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं. (6)

सर्वेश्वरि, तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो. (7)

|| श्री सप्तश्लोकी दुर्गा सम्पूर्ण || 

पाठ के बाद शांत बैठकर भावना करें कि देवी दुर्गा ने आप की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया है और वे आप को आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं। आप देवी कृपा से जीवन में नये उत्साह से भरते जा रहे है और सफल जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसके बाद पूजा के स्थान को छोड़कर अपने दैनिक कार्य में लग जाएँ।