Saturday 5 August 2023

(8.5.11) अधिक मास के कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी व्रत की कथा तथा व्रत का महत्व Parama Ekadashi Vrat Ki Katha Va Mahatva

 परमा एकादशी व्रत, व्रत की कथा तथा व्रत का महत्व Parama Ekadashi Vrat Ki Katha Va Mahatva

अधिक मास के कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी व्रत की कथा तथा व्रत का महत्व 

जब अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के विषय में पूछा तो भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा - हे अर्जुनअधिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी बहुत ही शुभ और उत्तम फल देने वाली है । इस एकादशी को परमा एकादशी कहा जाता है। आगे भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को परमा एकादशी के व्रत का महत्व बताया और व्रत की कथा सुनाई ।

परमा एकादशी व्रत की कथा इस प्रकार है -

अति प्राचीन काल की बात है एक बहुत ही सुंदर काम्पिल्य नाम का नगर था । उस नगर में बहुत ही धर्मात्मा और ईश्वर भक्त ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। उस ब्राह्मण का नाम था सुमेधा। सुमेधा की पत्नी भी एक सेवाभावी और पतिव्रता स्त्री थी । सुमेधा की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी परंतु फिर भी वह अपने घर आए किसी भी याचक को खाली हाथ नहीं जाने देता था ।वह अपने घर आए अतिथि का भी यथा संभव आदर सत्कार करता था। 

अपनी गरीबी को दूर करने की इच्छा से एक दिन सुमेधा ने अपनी पत्नी से कहा कि वह धन कमाने के लिए परदेश जाना चाहता है, जिससे वह अपने परिवार की आवश्यकताओं को पूरा कर सके। तब उसकी पत्नी ने उसे समझाते हुए कहा कि मनुष्य को समय से पहले और अपने भाग्य से अधिक कभी भी कुछ भी नहीं मिलता है। आप चाहे कहीं भी चले जाएं परंतु हमें हमारे भाग्य से अधिक प्राप्त नहीं हो सकता है। यह निर्धनता हमारे पूर्व जन्मों के कर्मों का परिणाम है। आप यहीं रहें और अपना कर्म करते रहें । प्रभु की कृपा से सब अच्छा होगा ।

सुमेधा अपनी पत्नी की इतनी ज्ञान पूर्ण बातें सुनकर बहुत प्रभावित हुआ और उसने परदेश जाने का अपना निर्णय बदल दिया ।सौभाग्य वश एक दिन उनके घर पर कौण्डिन्य नामक ऋषि का आगमन हुआ । कौण्डिन्य ऋषि को अपने घर पर आया देखकर उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई। उन्होंने उनका खूब आदर सत्कार किया ।

उनके आदर सत्कार और सेवा भाव से कौण्डिन्य ऋषि बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उनसे कुछ मांगने के लिए कहा तो , उस ब्राह्मण दंपति ने ऋषि से अपनी निर्धनता को दूर करने का उपाय पूछा । तो इस पर कौण्डिन्य ऋषि ने उनसे अधिक मास की कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी का व्रत करने के लिए कहा और फिर उन्होनें व्रत की विधि बताते हुए कहा कि आप पति पत्नी दोनों परमा एकादशी के व्रत को करो। एकादशी के दिन प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने बैठकर जल और पुष्प हाथ में लेकर व्रत का संकल्प करो। इसके बाद विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करो। ब्राह्मण को भोजन कराओ और उसे यथासंभव दक्षिणा देकर संतुष्ट करो। उसके बाद स्वयं फलाहार करो। रात्रि में भजन कीर्तन करते हुए समय व्यतीत करो ।

कौण्डिन्य ऋषि ने परमा एकादशी का महत्व बताते हुए कहा कि इस एकादशी का व्रत करने से जातक को धन ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। उसके सभी पापों का नाश हो जाता है और जातक इस लोक में सभी सुखों को भोग कर अंतकाल में वैकुंठधाम को प्राप्त करता है। 

इस व्रत का पालन करने से ही भगवान की कृपा से कुबेर धनाध्यक्ष हुए थे। 

कौण्डिन्य  ऋषि की बात सुनकर सुमेधा और उसकी पत्नी बहुत आशान्वित हो गए और परमा एकादशी आने पर सुमेधा ने अपनी पत्नी के साथ इस एकादशी का व्रत रखा और पूरे विधि विधान के साथ उसका पालन किया। इस व्रत के प्रभाव से उनके जीवन के सभी कष्टों का नाश हो गया। उनकी दरिद्रता दूर हो गई और उनके पास धन-धान्य की कोई कमी नहीं रही। वे दोनों समस्त सांसारिक सुखों को भोग कर अंतकाल में वैकुंठधाम को चले गए ।

 भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा - हे अर्जुन , जो भी मनुष्य परमा एकादशी के व्रत का पालन विधि विधान से करेगा उसका अवश्य ही कल्याण होगा।