Monday 14 August 2023

(6.4.17) संकटमोचन हनुमानाष्टक / पाठ करने के लाभ व विधि Benefits of Hanumanashtak

 संकटमोचन हनुमानाष्टक / पाठ करने के लाभ व विधि Benefits of Hanumanashtak

संकटमोचन हनुमानाष्टक

रामभक्त हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने के लिए कई उपाय हैं; उनमें से एक उपाय है, महाकवि तुलसीदास जी द्वारा रचित संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करना. अष्ट पदीय यह स्तुति पाठ हनुमान जी को उनकी शक्तियों और उनके सामर्थ्य की याद दिलाता है. इससे प्रसन्न होकर वे अपने भक्तों के कष्ट हर लेते हैं.

बचपन में हनुमानजी नटखट प्रकृति के थे. वे देवताओं के द्वारा दी गयी समस्त शक्तियों और वरदानों का प्रयोग बालसुलभ क्रीडाओं में किया करते थे. वे तपस्वी ऋषियों के आश्रमों में चले जाते थे और कोई न कोई उदण्डता कर देते थे जिससे व्यथित होकर उन्होंने हनुमान जी को शाप दे दिया कि तुम जिन शक्तियों का आश्रय लेकर हमें सताते हो, उन शक्तियों के बल को हमारे शाप से मोहित होकर भूल जाओगे. लेकिन जब कोई तुम्हें तुम्हारी कीर्ति और बल का स्मरण करायेगा, तभी तुम्हें तुम्हारे शक्तिशाली और बलवान होने का आभास होगा और अपने बल का प्रयोग कर सकोगे. इसीलिए माता सीता की खोज के लिए प्रस्थान करने से पूर्व जामवंत जी ने हनुमान जी को उनकी दिव्य शक्तियाँ याद दिलाई थी.

संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करने के लाभ –

संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करने से पाठ करने वाले व्यक्ति और उसके परिवार पर हनुमान जी की कृपा बनी रहती है.

शत्रुबाधा का निवारण होता है.

जीवन में आने वाले खतरों और कष्टों से मुक्ति मिलती है.

मनोबल बढ़ता है और शारीरिक बल में वृद्धि होती है.

बौद्धिक क्षमता का विकास होता है.

रचनात्मक शक्ति का विकास होता है.

पाठकर्ता के आस पास नकारात्मक ऊर्जा नहीं रहती है.

पारिवारिक जीवन में सुख शान्ति, स्नेह और एकता बनी रहती है.

जन्म कुण्डली में शनि, मंगल आदि ग्रहों की अशुभ स्थिति का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है.

हनुमानाष्टक का पाठ करने की विधि –

हनुमानाष्टक का पाठ करने की कोई विशेष विधि नहीं है. इसका पाठ कभी भी और कहीं भी किया जा सकता है. लेकिन नियमित और किसी संकट विशेष से मुक्ति पाने के लिए इसका पाठ करना चाहें तो, अपने घर में किसी शांत स्थान पर ऊन के आसन पर बैठ जायें. हनुमान जी का चित्र अपने सामने रख लें. धूप बत्ती जला दें. हनुमानजी का मन ही मन ध्यान करें और फिर हनुमाष्टक का पाठ करें. पाठ किसी मंगलवार से शुरू करके इकतालीस दिन तक प्रतिदिन इसका एक बार पाठ करें. यदि संकट बड़ा हो तो प्रतिदिन इसका सात बार पाठ करें.