Wednesday 9 August 2023

(6.4.11) हनुमान जी के जन्म की कथा (Hanuman Birth Story)

हनुमान जी के जन्म की कथा (Hanuman Birth Story)

हनुमान जी के अवतरण की कथा

हिन्दू शास्त्रों में हनुमान जी के अवतरण के बारे में विभिन्न मत मिलते हैं. आनन्द रामायण के अनुसार हनुमान जी के जन्म की कथा इस प्रकार है -  

कपिराज केसरी की पत्नी अंजना ने पुत्र की प्राप्ति के लिए लम्बे समय तक भगवान् शिव की तपस्या की।  प्रसन्न होकर आशुतोष भगवान् शिव ने अंजना से वर मांगने  के लिए कहा।  अंजना ने भगवान् शिव के चरणों में प्रणाम कर अत्यन्त विनयपूर्वक याचना की - "करूणामय शम्भो, मैं समस्त गुणों से संपन्न योग्यतम पुत्र चाहती  हूँ। "

भगवान् भोले नाथ ने कहा, " एकादश रूद्र के रूप में मेरा अंश ग्यारहवां रूद्र रूप ही तुम्हारे पुत्र के रूप में प्रकट होगा। तुम मंत्र ग्रहण करो।  पवन देवता तुम्हे प्रसाद देंगे।  पवन के उस प्रसाद से ही तुम्हे सर्वगुण संपन्न पुत्र की प्राप्ति होगी।  भगवान् शिव अंतर्ध्यान हो गये और भगवती अंजना अंजली पसारे शिव प्रदत्त मंत्र का जप करने लगी।  उसी समय एक चील कैकयी के भाग का पायस (यज्ञ खीर) का कुछ अंश कैकेयी के हाथ से लेकर आकाश में उड़ती जा रही थी।  सहसा झंझावात आया, चील का अंग सिकुड़ने लगा और पायस उसकी चोंच से नीचे गिर गया। पवन देव ने उसे अंजना की अंजलि में डाल दिया।भगवान्  शंकर पहले ही यह सब बता चुके थे। इसलिए अंजना ने तुरंत पवन प्रदत्त चरु अत्यंत आदरपूर्वक ग्रहण कर लिया और वे गर्भवती हो गयी।  

चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार को मंगल वेला में भगवान् शिव अपने  आराध्य देव श्री राम की अवतार लीला के दर्शन एवं उसमें सहायता प्रदान करने के  लिए अपने अंश ग्यारहवें रूद्र से इस शुभ तिथि और शुभ मुहूर्त में माता अंजना के गर्भ से महावीर हनुमान के रूप में धरती पर अवतरित हुए।  

भाग्यवती धरित्री पर हनुमान जी के चरण रखते ही माता अंजना और कपिराज केसरी के आनंद की तो सीमा नहीं रही।  देवगण ,ऋषिगण, कपिगण, पर्वत, प्रपात, सरिता, समुद्र, पशु-पक्षी और जड़-चेतन ही नहीं, स्वयं माता वसुंधरा पुलकित हो उठी। सर्वत्र  हर्ष एवं उल्लास फैला हुआ था।  चतुर्दिक  आनंद का साम्राज्य व्याप्त हो गया था।

कल्प भेद से कुछ लोग इनका प्राकट्य काल कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को और कुछ चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को मानते है। कोई मंगलवार तो कोई शनिवार उनका जन्म  दिन स्वीकार करतें है।

एक अन्य मत के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में हनुमान जी का जन्म हुआ था और चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को सीता की खोज, राक्षसों के उपमर्दन, लंका के दहन और समुद्र के उल्लंघन आदि में हनुमान जीके विजय होने और निरापद वापस लौटने के उपलक्ष में हर्षोन्मत्त वानरों ने मधुवन में हर्ष मनाया था और उससे सभी नर-वानर सुखी हुए थे . इस कारण उक्त दोनों दिनों में व्रत और उत्सव किया जाये तो अधिक फल होगा .

सन्दर्भ – हनुमान अंक पृष्ठ 133 , व्रत परिचय – (गीताप्रेस) तथा वाल्मीकीय रामायण (किष्किन्धा काण्ड सर्ग 66 और उत्तरकाण्ड सर्ग 35)