Wednesday 9 August 2023

(6.4.12) हनुमान जी के सिन्दूर क्यों लगाया जाता है Hanumanji Ke Sindur Kyon Lagaya Jata Hai

 हनुमान जी के सिन्दूर क्यों लगाया जाता है Hanumanji Ke Sindur Kyon Lagaya Jata Hai

हनुमान जी के  सिंदूर क्यों लगाया जाता है

हनुमान जी के  सिंदूर क्यों लगाया जाता है इसके लिए दो कथाएं प्रचिलित हैं -

(1) एक दिन हनुमान जी को भूख लगी तो वे सीधे माता जानकी के समीप गये  और बोले, "माँ मुझे भूख लगी है।  मुझे खाने के लिए  कुछ दीजिए।  सीता ने कहा, " मैं स्नान करके तुम्हे मोदक देती हूँ।"

माता के वचन सुन कर हनुमान जी राम नाम का जप करते हुए सीता के स्नान कर लेने की प्रतीक्षा करने लगे।  स्नान जे बाद सीता ने अपनी मांग में सिंदूर लगाया। हनुमान जी ने पूछा , " माता जी आपने यह सिंदूर क्यों लगाया है ? " सीता ने उत्तर दिया , " इस सिंदूर के लगाने से तुम्हारे स्वामी की आयु वृद्धि होती है।" "सिंदूर लगाने से मेरे स्वामी की आयु बढ़ती है।" हनुमान जी मन ही मन सोचने लगे। फिर वे अचानक उठे और अपने  शरीर पर तेल लगा कर सिंदूर पोत  लिया।  हनुमान जी बड़े खुश थे कि इस सिंदूर लेप से मेरे प्रभु  की आयु वृद्धि हो जाएगी। इसी स्थिति में हनुमान जी प्रभु श्री राम की राज सभा में पहुंच गए। उन्हें सिंदूर लेपा  हुआ देख कर वहां  जोर का अट्टहास हुआ। भगवान श्री राम भी मुस्कुरा उठे।  उन्होंने हनुमान जी से पूछा, "हनुमान, आज तुमने अपने  शरीर पर सिंदूर क्यों लेप रखा है ?"

हनुमान जी ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया, "प्रभो, माता सीता (जानकी) के तनिक सा सिंदूर लगाने मात्र से ही आपकी आयु में वृद्धि होती है, यह  जानकर आपकी अत्यधिक आयु वृद्धि  के लिए मैंने समूचे शरीर पर  सिंदूर लगाना प्रारम्भ कर दिया है।"  भगवान राम हनुमान जी के सरल भाव पर मुग्ध हो गए। उन्होंने घोषणा की, "आज मंगलवार है। इस दिन मेरे प्रिय  भक्त हनुमान जी को जो भी तेल और सिंदूर लगायेगा  उसे मेरी प्रसन्नता प्राप्त होगी और उसकी समस्त मनो कामनाओं की पूर्ति होगी।  "  (हनुमान अंक पेज 256 )

दूसरी कथा -

(2)  लंका विजय के बाद जब रामचन्द्र जी ने सुग्रीव आदि को पारितोषिक दिया था , उस समय सीता जी ने हनुमान जी  को  एक बहुमूल्य मणियों की माला दी थी।  परन्तु उस माला में श्री राम नाम नहीं होने से वे उदासीन ही रहे।  तब सीता जी ने उन्हें अपने सीमन्त का "सिंदूर" देकर कहा कि यह मेरा सौभाग्य चिन्ह है, इसको मैं  धन- धाम और रत्न आदि से भी अधिक प्रिय मानती हूँ , अतः तुम इसे स्वीकार करो।  " तब से हनुमान जी ने सिंदूर को अंगीकार कर लिया। इसी हेतु उपासक हनुमान जी की प्रतिमा के तेल मिश्रित सिंदूर का लेप करते हैं।   (हनुमान अंक पेज 487 )