Thursday 10 August 2023

(6.4.13) एक प्रेत ने तुलसीदास जी को श्री राम के दर्शन कराये (Tulasidas Ji Ko Ram Ke Darshan Huye)

 एक प्रेत ने तुलसीदास जी को श्री राम के दर्शन कराये (Tulasidas Ji Ko Ram Ke Darshan Huye)

एक प्रेत ने तुलसीदास जी को श्री राम के दर्शन करने में कैसे सहायता की ? 

तुलसीदासजी को श्री राम के दर्शन कैसे हुए ? इसके बारे में  एक कथा प्रसिद्ध है। इस कथा के अनुसार तुलसीदास जी नित्य  शौच से लौटते समय शौच का बचा हुआ जल बेर के एक पेड़ की जड़ों में डाल देते थे। इस पेड़ पर एक प्रेत रहता था। प्रेत योनि की तृप्ति ऐसी ही निकृष्ट वस्तुओं से होती है। प्रेत उस अशुद्ध जल को प्रतिदिन पाकर प्रसन्न हो गया। एक दिन उसने प्रकट होकर तुलसीदासजी से कहा , " मैं आपसे प्रसन्न हूँ। बताइये , मैं  आप की क्या सेवा करूँ ? " तुलसीदास जी ने कहा , " मुझे श्री राम  के दर्शन करा दो। " इस पर प्रेत ने कहा , " यदि मैं श्री राम के दर्शन करा पाता तो मैं अधम प्रेत ही क्यों रहता। किन्तु मैं आप को एक उपाय बता सकता हूँ। अमुक स्थान पर श्री रामायण जी की कथा होती है। वहाँ एक वृद्ध कुष्ठी के रूप में श्री हनुमानजी नित्य पधारते हैं और सबसे दूर बैठ कर कथा सुनकर सबसे बाद में वहाँ से जाते हैं। आप उनके चरण पकड़ लें। उनकी कृपा से आप की श्री राम के दर्शन करने की मनोकामना पूर्ण हो सकती है। "

तुलसीदासजी उसी दिन रामायण कथा में पहुँचे। उन्होंने  वृद्ध कुष्ठी के वेश में हनुमान जी को पहचान लिया और कथा के अंत में उनके चरण पकड़ लिये और उनसे श्री राम के दर्शन करवाने की प्रार्थना की।  पहले तो हनुमानजी ना - नुकर करते रहे , किन्तु तुलसीदासजी की निष्ठा एवं प्रेमाग्रह देख कर उन्होंने उनको ( तुलसीदासजी को ) एक मन्त्र देकर चित्रकूट में अनुष्ठान करने को कहा। हनुमानजी ने उनको श्री राम के दर्शन कराने का वचन भी दे दिया।

तुलसीदासजी चित्रकूट पहुंचे और हनुमानजी के बताये मन्त्र का अनुष्ठान करने लगे। एक दिन उन्होंने  देखा कि दो बड़े ही सुन्दर राजकुमार धनुष - बाण लिए , घोड़ों पर सवार हो कर जा रहे हैं। तुलसीदासजी ने उनको देखा और उनकी तरफ आकर्षित भी हुये , परन्तु उन्हें पहचान नहीं पाये। हनुमानजी ने प्रत्यक्ष प्रकट होकर तुलसीदासजी से पूछा , " श्री राम के दर्शन हो गये न ? "

इस पर तुलसीदासजी ने अपनी अनभिज्ञता प्रकट की, तो हनुमानजी ने सारा भेद बताया। इस पर तुलसीदासजी पश्चाताप  करने लगे। हनुमानजी ने उन्हें प्रेम पूर्वक धैर्य बंधाया और बोले , " आप को फिर से श्री राम के दर्शन हो जायेंगे। "

एक दिन प्रातःकाल स्नान ध्यान के बाद तुलसीदासजी चन्दन घिस रहे थे तभी श्री राम और लक्ष्मण बालक रूप में आकर कहने लगे , " बाबा , हमें भी चन्दन दो न। " हनुमानजी को लगा कि तुलसीदास जी इस बार भी भूल न कर जाएँ , इस लिए उन्होंने एक तोते का रूप धारण किया और कहने लगे -

"चित्रकूट के घाट पर भई सन्तन की भीर।

तुलसीदास चन्दन घिसें , तिलक देत रघुवीर।"

तुलसीदासजी ने श्री राम और लक्ष्मण को अपने हाथ से तिलक लगाया। इसके बाद वे ( श्री राम और लक्ष्मण ) अन्तर्ध्यान हो गये। इस प्रकार तुलसीदासजी को श्री राम के दर्शन हुए। 

(सन्दर्भ - हनुमान अंक - पृष्ठ 371)