Friday 11 August 2023

(6.4.15) हनुमानजी को किस देवता ने क्या वरदान दिया Devtaon ne Hanumanji ko Vardan Diye

 हनुमानजी को किस देवता ने क्या वरदान दिया Devtaon ne Hanumanji ko Vardan Diye

हनुमानजी को किस देवता ने क्या वरदान दिया

हनुमान अंक के पृष्ठ संख्या 252 के अनुसार

बालक हनुमान ने सूर्य को फल समझ कर उसे पकड़ने के लिए दौड़े, तो देवराज इन्द्र ने उन पर वज्र से प्रहार कर दिया. इन्द्र के प्रहार से बालक हनुमान मूर्छित होकर गिर पड़े. पवनदेव अपने पुत्र यानि हनुमानजी की यह दशा देखकर बहुत क्रोधित हो गये और समस्त संसार को वायु विहीन कर दिया. 

तब देवताओं के आग्रह पर ब्रह्माजी वहाँ आये और उन्होंने अत्यंत स्नेहपूर्वक पवनदेव को उठाया और उनके मूर्छित पुत्र हनुमान के शरीर पर अपना हाथ फेरा जिससे हनुमान जी की मूर्छा दूर हो गयी. अपने पुत्र को स्वस्थ देखते ही पवनदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की.

तब ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर हनुमानजी को वर प्रदान करते हुए कहा कि इस बालक को ब्रह्मशाप नहीं लगेगा.

फिर उन्होंने देवताओं से कहा कि यह असाधारण बालक है; जो भविष्य में आप लोगों का बड़ा हितसाधन करेगा, अतः आप लोग भी इसे वर प्रदान करें.

तब इन्द्रदेव ने कहा कि मेरे हाथ से छूटे हुए वज्र से इस बालक की हनु यानि ठुड्डी टूटी है इसलिए इस कपिश्रेष्ठ का नाम हनुमान होगा. इसके अतिरिक्त इस बालक पर मेरे वज्र से इसे कोई हानि नहीं होगी और इसका शरीर मेरे वज्र से भी कठोर होगा.

वहाँ उपस्थित सूर्यदेव ने कहा कि मैं मेरे तेज का शतांश इस बालक को प्रदान करता हूँ; साथ ही उचित समय पर इसे शिक्षा देकर शास्त्र मर्मज्ञ बना दूंगा. यह अद्वितीय विद्वान् और वक्ता होगा.

वरुणदेव ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह बालक मेरे पाश (एक प्रकार के शस्त्र) और जल से सदा सुरक्षित रहेगा.

यमराज ने कहा कि यह नीरोग रहेगा और मेरे प्रकोप का कभी भी भागी नहीं बनेगा.

कुबेर ने कहा कि यह मेरी गदा से सदा सुरक्षित रहेगा और यक्ष, राक्षसों आदि से कभी पराजित नहीं होगा.

भगवान् शिव ने वरदान दिया कि मेरे अस्त्रों और शस्त्रों से इसकी मृत्यु नहीं होगी.

विश्वकर्मा ने कहा कि यह बालक मेरे द्वारा निर्मित समस्त दिव्य अस्त्रों से सदा सुरक्षित रह कर चिरायु होगा.

इस प्रकार देवताओं के अमोघ वरदान दे देने के बाद कमलयोनि ब्रह्मा ने अत्यंत प्रसन्न होकर दुबारा कहा कि यह दीर्घायु, महात्मा तथा सब प्रकार के ब्रह्मदण्डों से अवध्य रहेगा.

फिर प्रसन्न चतुरानन ने पवनदेव से कहा कि तुम्हारा यह पुत्र शत्रुओं के लिए भयंकर और मित्रों के लिए अभय देने वाला होगा. इसे युद्ध में कोई पराजित नहीं कर सकेगा. यह इच्छा अनुसार रूप धारणकर जहाँ चाहेगा; वहाँ जा सकेगा. इसकी गति अबाधित रहेगी.यह अत्यंत यशस्वी होगा और अत्यंत अदभुत और रोमांचकारी कार्य करेगा.

इस प्रकार ब्रह्मा आदि सभी देवताओं ने हनुमान जी को वरदान दिये और अपने अपने स्थान की ओर प्रस्थान किया.