Tuesday 4 October 2016

(8.1.10) Vaman Dwadashi / Vaman Jayanti / वामन द्वादशी / वामन जयंती

Vaman Jayanti / Vaman Dwadashi / वामन द्वादशी / वामन जयंती 

वामन जयंती कब है ? When is Vaman Jayanti 
भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को वामन जयंती अथवा वामन द्वादशी के नाम से जाना जाता है। जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है , वामन देव की पूजा करता है, भगवान वामन की कृपा से उसकी सम्पूर्ण इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
वामन और बलि की कहानी 
भगवान वामन भगवान विष्णु के  अवतार है इनके पिता का नाम कश्यप और माता का नाम अदिती था। भाद्रपद शुक्ल पक्ष में द्वादशी के दिन श्रवण नक्षत्र और अभिजीत मुहूर्त में मध्यान्ह के समय भगवान वामन का जन्म हुआ था।  इस द्वादशी को विजया द्वादशी भी कहा जाता है। भगवान वामन शस्त्र, आभूषण आदि धारण किये हुए रूप में प्रकट हुए थे तथा अपने स्वरूप को वामन रूप में बदल लिया था।  उस वामन रूप को देखकर सभी प्रसन्न हुए और जात कर्म आदि संस्कार करने लगे।  यज्ञोपवीत के समय सूर्य ने इन्हें गायत्री का उपदेश किया, देव गुरु वृहस्पति ने यज्ञोपवीत व कश्यप ने मेखला दी।  तदनन्तर वामन जी ने सुना कि शुक्राचार्य की सलाह से बलि ने बहुत से अश्वमेघ  यज्ञ  कराये हैं। यह यज्ञ सौवां था। यह नर्बदा के उत्तर तट पर भृगु कच्छ तीर्थ पर हो रहा था।  भगवान वामन उस यज्ञ स्थल पर पहुंचें। बलि  ने उनका स्वागत कर चरणों को धोकर उनका पूजन किया।  फिर बलि बोले - आप के आने से हमारा यह यज्ञ सफल को गया है। आपकी जो इच्छा हो सो मांगिये।  वामन बोले - मैं केवल तीन पैर ( डग ) पृथ्वी मांगना चाहता हूँ , और मैं स्वयं ही इसे अपने पैरों से नापूंगा।  राज बलि हंस कर बोले - आप के वचन तो वृद्धों के समान हैं, परन्तु आपकी बुद्धि बालकों के समान है।  हे ब्राह्मण , आप चाहो तो मैं आपको एक द्वीप दे दूँ।  इस पर वामन जी बोले - हे नृप , जो तीन पैर पृथ्वी से संतुष्ट नहीं हुआ है , वह वन खंड मिलाने से भी संतुष्ट नहीं हो सकता है।  इसीलिए जो मिल जाये उसी पर संतोष करना मुक्ति का हेतु होता है।  अत: आप मुझे केवल तीन डग पृथ्वी ही दीजिये।  राजा  बलि के दान देने की सहमति पर भगवान वामन ने अपना रूप विराट  बना लिया और एक पग से बलि की साडी पृथ्वी नाप ली , शरीर से आकाश  और भुजाओं से दिशाएं घेर ली।  दूसरे  पग से  उन्होंने स्वर्ग को नाप लिया।  तीसरा पैर रखने के लिए बलि के पास कोई जगह नहीं बची।  अपने वचन को पूरा करने के लिये बलि ने भगवान वामन से कहा कि आप अपना तीसरा पैर मेरे सिर पर रख दीजिये।  भगवान वामन बलि की उदारता और दान शीलता से प्रभावित होकर उनको पटल लोक का साम्राज्य दे दिया और स्वयं ने द्वारपाल का पद स्वीकार कर लिया।