Monday 3 October 2016

(8.5.8) Jal Jhulani Ekadashi Vrat / Padma Ekadashi

Padma Ekadashi Vrat / Jaljhulani Ekadashi Vrat Vidhi / जल झूलनी एकादशी व्रत विधि / पद्मा एकादशी / जल झूलनी एकादशी के महत्व / कटि परिवर्तन उत्सव 

जल झूलनी एकादशी/ पद्मा एकादशी 
भाद्रपद शुक्ल एकादशी को जलझूलनी एकादशी , पद्मा एकादशी ,जल झूलनी  ग्यारस , कटि परिवर्तनी एकादशी आदि नामों  से जाना जाता है। राजस्थान में इसे जल झूलनी ग्यारस (एकादशी) के नाम से जाना जाता है।   मंदिरों में रखी देवताओं की प्रतिमाओं  को नजदीक के तालाब, नदी या झील तक जुलूस के रूप में ले जाया जाता है और उन्हें वहां स्नान कराया जाता है।
व्रत  - 
जो व्यक्ति भाद्रपद शुक्ल एकादशी का व्रत करता है , उसे प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो कर भगवान  का पूजन करना चाहिए , विशेष रूप से भगवान विष्णु  के वामन रूप की पूजा करनी चाहिए। उपवास करके रात्रि के समय जागरण करे  , हरि स्मरण करे। दूसरे दिन व्रत खोले।  यह  व्रत सभी प्रकार की मनोकामनओं की पूर्ति  करने वाला व्रत है।
कटि परिवर्तन उत्सव - 
आषाढ  शुक्ल  एकादशी ( देवशयनी  एकादशी ) से कार्तिक शुक्ल  एकादशी ( देव उठनी एकादशी ) तक भगवान  विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं।  इस अवधि में भाद्रपद  शुक्ल एकादशी को भगवान का कटि परिवर्तन किया जाता है अर्थात करवट बदलवाई जाती है।  (इसलिये  इस जल झूलनी एकादशी को कटि परिवर्तनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। ) कटि परिवर्तन के लिये देव प्रबोधिनी के समान ही विधान करके भगवान  की प्रतिमा को विमान में विराजित करके गायन, वादन , कीर्तन , जय घोष आदि के साथ जलाशय ले जाया जाता है और वहाँ उन्हें स्नान कराया जाता है।  जलाशय से प्रतिमाओं को वापस लाकर संध्या के समय महापूजा और नीराजन  करके रात्रि में भगवान  को दक्षिण कटि  शयन कराया जाता है।
पद्मा  एकादशी से जुड़ी  कहानी - 
प्राचीन काल  में सूर्य वंश में मान्धाता नामक  चक्र वर्ती राजा हुये थे।  उनके राज्य में तीन वर्ष तक  लगातार वर्षा नहीं हुई जिससे राज्य की जनता बहुत दुखी हो गयी।  इस अनावृष्टि को मिटाने  के लिये  अंगिरा  ऋषि के निर्देश पर राजा  मान्धाता ने इसी पद्मा  एकादशी के व्रत का अनुष्ठान किया था, जिससे  उसके राज्य में सर्वत्र
सदैव अनुकूल वर्षा होती रही।    
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