Tuesday 4 October 2016

(8.1.12) Narak Chaturdashi / Roop Chaturdashi

Roop Chaturdashi / Narak Chaturdashi / रूप  चतुर्दशी / नरक चतुर्दशी 

When is Narak Chaturdashi ?When is Roop Chaturdashi ?/ नरक चतुर्दशी कब है ? रूप चतुर्दशी कब है ?
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन नरक चतुर्दशी अथवा रूप चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है।
इस दिन नरक से मुक्ति पाने के लिए प्रात: काल तेल लगा कर अपामार्ग अर्थात चिचड़ी के पौधे से मिश्रित जल से स्नान करना चाहिए। इस दिन शाम को यमराज की प्रसन्नता के लिए दीपदान करना चाहिए।  
इसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है।  इस दिन प्रात: काल उठकर आटा , तेल , हल्दी से उबटन कर के स्नान करना चाहिए।  
दीपदान:- 
शाम को भोजन करने से पूर्व एक थाली में एक चौमुखा दीपक और छोटे दीपक रख कर उनमे तेल और बत्ती डालकर जला लें । फिर रोली , अबीर , गुलाल , पुष्प आदि से पूजा करें।  पूजन के पश्चात् सब दीपकों को घर में विभिन्न स्थानों पर रखें जैसे पूजा के स्थान पर , परिंडे पर ( जल रखने के स्थान पर ), तुलसी के पौधे के नीचे आदि। शेष दीपकों को घर के पास स्थित देवालयों में , पीपल के वृक्ष के नीचे तथा यमराज के लिए तेल का दीपक जलाकर दक्षिण दिशा की ओर मुह कर के चौराहे पर दीपदान करना चाहिए।  
यम तर्पण - 
कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी को सायं काल के समय दक्षिण दिशा की ओर मुँह  कर के जल , तिल और कुश लेकर देव तीर्थ से  "यमाय  धर्मराजाय मृत्युवे अनन्ताय वैवस्वताय कालाय सर्वभूतक्षयाय औदुम्बराय  दध्नाय नीलाय परमेष्ठिने वृकोदराय चित्राय और चित्रगुप्ताय। " इन में से प्रत्येक नाम का ' नमः ' सहित उच्चारण कर के जल छोड़े।  यज्ञोपवीत को कंठी की तरह रखे और काले तथा सफ़ेद दोनों प्रकार के तिलों को काम में लें।  कारण  यह है कि यम में धर्म राज के रूप में देवत्व और यमराज के रूप में पितृत्व - ये दोनों अंश विद्यमान हैं। 
 हनुमान जयंती - 
यद्यपि अधिकांश उपासक कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को ही हनुमान जयंती के रूप में मानते हैं और व्रत करते हैं , परन्तु शास्त्रांतर में चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हनुमान जन्म का उल्लेख किया गया है। 
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमान जयंती मनाने का कारण यह है कि लंका विजय के बाद श्री राम अयोध्या आये। भगवान रामचन्द्रजी ने और भगवती जानकी  जी ने वानरादि को विदा करते समय यथा योग्य पारितोषिक दिया था।  उस समय इसी दिन ( कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को ) सीता जी ने हनुमान जी को पहले तो अपने गले की माला पहनायी ( जिसमें बड़े - बड़े बहुमूल्य मोती और अनेक रत्न थे ) परंतु उस माला में राम - नाम नहीं होने से हनुमान जी उससे संतुष्ट नहीं हुए।  तब सीता जी ने अपने ललाट पर लगा हुआ सौभाग्य द्रव्य 'सिंदूर' प्रदान किया और कहा कि  इससे बढ कर मेरे पास अधिक महत्त्व की कोई वस्तु नहीं है, अतएव तुम इस को हर्ष के साथ धारण करो और सदैव अजर - अमर रहो।  यही कारण है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमान जन्म उत्सव मनाया जाता है और तेल सिंदूर चढ़ाया जाता है। (सन्दर्भ - व्रत परिचय पेज 136 -137 )