Bihare ke Dohe / Dohe of Bihari / Kavi Bihari Ke Dohe / बिहारी के दोहे
बिहारी के नीतिपरक दोहे उनकी लौकिक, व्यवहारपटुता और पर्यवेक्षण-शक्ति के परिचायक हैं। बिहारी के काव्य में भाव और भाषा का मणि-काञ्चन योग है।
(१) कनक-कनक तै सौ गुनो, मादकता अधिकाइ।
उहिं खायें बौराइ नर, इहिं पायें बौराइ।।
(२) नर की अरु नल नीर की, गति एकै करि जोइ।
जेतौ नीचौ ह्वै चलै, तेतौ ऊँचौ होइ।।
(३) बढ़त-बढ़त सम्पति सलिल, मन सरोज बढ़ि जाइ।
घटत-घटत सु न फिरि घटै, बरु समूल कुम्हिलाइ।।
(४) मीन न नीति गलीतु ह्वै, जौ धरियै धनु जोरि।
खाएैं खरचैं जौ जुरै, तौ जोरियै करोरि।।
(५)चटक न छौंडत घटत हूँ, सज्जन नेह गंभीरु।
फीकौ परै न बरु फटै, रैंग्यौ चोल रँग चीरु।।
(६) कोटि जतन कोउ करौ, परै न प्रकृतिहिं बीच।
नल-बल जल ऊँचैं चढैं, अंत नीच कौ नीच।।