Sunday 2 October 2016

(8.5.5) Devshayani Ekadashi Vrat, Katha, laabh

Dev Shayani Ekadashi / Dev Shayani Ekadashi Vrat Vidhi / Hari Shayani Ekadashi / देव शयनी एकादशी / हरि शयनीएकादशी / एकादशी व्रत विधि व्रत / देवशयनी एकादशी व्रत के लाभ 

देव शयनी एकादशी / हरि शयनी एकादशी 
आषाढ़ शुक्ल  एकादशी को देवशयनी एकादशी या हरि  शयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। पुराणों  के अनुसार इस दिन  से चार मास तक भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करते हैं और देव उठनी एकादशी को जागते हैं।
यह दिन हिन्दुओं के लिए  बहुत महत्व पूर्ण  और पवित्र है। वे भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, व्रत रखते हैं तथा रात्रि में भगवान विष्णु से सम्बंधित प्रवचन , प्रार्थना , स्तोत्र , कहानियाँ आदि सुनते और  सुनाते हैं। देव शयनी एकादशी से चतुर्मास भी प्रारम्भ  जाता है। चतुर्मास  के दौरान   लोग भगवान विष्णु से सम्बंधित प्रवचन सुनते या पढ़ते हैं। इस अवधि में विवाह आदि  धार्मिक कार्य स्थगित रहते हैं।
 एकादशी का व्रत मोक्ष प्रदान करने वाला है तथा व्रत करने वाले  के जीवन में प्रसन्नता व सम्पन्नता  लाता है। व्रत रखने वाले व्यक्ति को प्रात: काल जल्दी उठकर स्नान के बाद विष्णु पूजा करनी चाहिए। यदि नजदीक कोई विष्णु मंदिर हो तो वहाँ जाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के दर्शन करने चाहिए। चौबीस घंटे के लिए व्रत करे और इस व्रत को अगले दिन द्वादशी को स्नान करके खोले।
 देव शयनी एकादशी के लिए मन्त्र  या प्रार्थना -
विष्णु सहस्त्र नाम
विशेष - ( भविष्योत्तर पुराण ) -
आषाढ़ शुक्ल एकादशी का नाम देव शयनी एकादशी है। इस दिन उपवास करके सोना, चाँदी, तांबा या पीतल की  मूर्ति बनवाकर उसका यथोपलब्ध उपचारों से पूजन करे और पीताम्बर से विभूषित करके सफेद   चादर से ढके हुए गद्दे - तकिया वाले पलंग पर शयन करावे।
 इन चार महिनों  के लिए अपनी  रूचि अनुसार नित्य व्यवहार के पदार्थो का त्याग और ग्रहण करें। जैसे मधुर स्वर के लिए 'गुड'का , दीर्घायु अथवा पुत्र - पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का , शत्रु नाशादि के लिए कडवे तेल का , सौभाग्य के लिए मीठे  तेल का और स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुष्पादि भोगों  का त्याग करें। देह  शुद्दि  या सुन्दरता के लिए परिमित प्रमाण के पंचगव्य का,वंश वृद्धि के लिए नियमित दू ध का, कुरु क्षेत्रादि के समान फल मिलने के लिए पात्र में भोजन करने के बदले पत्र का और सर्व पाप क्षयपूर्वक सकल पुण्य फल प्राप्त होने  के लिए ' एकभुक्त, नक्त व्रत , अयाचित भोजन या सर्वथा उपवास करने का व्रत करें, तो इस का बहुत फल होता है।  
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