Thursday 13 October 2016

(8.1.14) Mahashivratri / Shivratri Vrat / Shivratri ka Mahatva

Shivratri / Mahashivratri/ Shivratri Vrat / शिवरात्रि / महाशिवरात्रि/ शिवरात्रि व्रत/ शिवरात्रि कब मनाई जाती है ? 

When is Mahashivratri / शिवरात्रि कब मनाई  जाती है ?
फाल्गुन कृष्णा चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व का आयोजन किया जाता है।  ( For day and date click here)
फाल्गुन कृष्णा चतुर्दशी को ही शिव रात्रि का पर्व क्यों -
भारतीय पंचाग के अनुसार प्रतिपदा से लेकर सोलह तिथियाँ हैं । जिस तिथि का स्वामी जो देवता होता है , उसी देवता का उस तिथि में व्रत पूजन करने से उसकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान् शिव हैं। इस लिए इस तिथि में भगवान् शिव की पूजा अर्चना करना उतम माना जाता है। यदपि प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी शिव रात्रि होती है किन्तु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के निशीथ ( रात्रि ) में " शिव  लिङ्ग तयोद्भूत: कोटि सूर्य समप्रभ:। ईशान संहिता के इस वाक्य के अनुसार ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था, इस कारण यह महा शिव रात्रि मानी जाती है। 
महा शिव रात्रि व्रत -
महा शिव रात्रि के दिन प्रात: काल स्नान करके व्रत का संकल्प लें और भगवान् शिव की विधि विधान पूर्वक पूजा करें तथा सायं काल शिव मंदिर में जाकर , गंध , पुष्प , बिल्व पात्र , धतूरे के फूल , घृत मिश्रित गुग्गल की धूप , दीप, नैवैद्य और नीराजनादि आवश्यक सामग्री समीप रख कर रात्रि के प्रथम प्रहर में 'पहली', द्वितीय प्रहर में 'दूसरी', तृतीय प्रहर में 'तीसरी' और चतुर्थ प्रहार में 'चौथी' पूजा करें। चारों पूजा पञ्च- पोचार या षोडशोपचार , जिस विधि से बन सके समान रूप से करें और साथ में रूद्र पाठ आदि भी करें। इस प्रकार करने से पाठ , पूजा , जागरण व उपवास सभी संपन्न हो सकते हैं। शिव रात्रि के व्रत में कठिनाई तो इतनी है कि वेद पाठी विद्वान् ही यथा विधि संपन्न कर सकते हैं और सरलता इतनी है कि पढ़ा हुआ अथवा अनपढ़ , धनी  या निर्धन सभी अपनी - अपनी सुविधा व सामर्थ्य के अनुसार भारी समारोह के साथ  या थोड़े से गाजर , बेर , मूली आदि सर्व सुलभ फल फूल से भी पूजन किया जा सकता है और दयालु भगवान् छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी सभी पूजा से प्रसन्न हो जाते हैं। 
महा शिव रात्रि व्रत का महत्व -
भगवान् शिव को प्रसन्न करने व अपनी मनोकामना पूर्ण करने का महोत्सव है , महा शिव रात्रि। इसके ठोस प्रमाण शिव पुराण  व स्कन्द  पुराण  में देखने को मिलते हैं।स्कंद पुराण का कथन है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिव जी का पूजन , जागरण व उपवास करने वाले व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता है। उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। विद्येश्वर संहिता के अनुसार महा शिव रात्रि के दिन जो प्राणी निराहार व जितेन्द्रिय रह कर उपवास रखता है, शिव लिंग के दर्शन , स्पर्श करता है वह जन्म मरण के बंधन से मुक्त होकर शिवमय हो जाता है। इस दिन भगवान् शिव की पूजा अर्चना करने से साधुओं को मोक्ष प्राप्ति , रोगियों  को रोगों से मुक्ति तथा सभी साधकों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस दिन पूजा करने से गृहस्थ जीवन में चल रहा मत भेद समाप्त हो जाता है, अखंड सौभाग्य की  प्राप्ति होती है और साधक को शुभ फलों की प्राप्ति होती है।