Thursday 13 October 2016

(8.6.2) Maghi Amavasya / Mauni Amavasya माघी अमावस्या

Maghi Amavasya / Important things about Maghi Amavasya / Importance of Maghi Amavasya ? माघी अमावस्या 

When is Maghi Amavasya माघी अमावस्या कब है? 
हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ माह की अमावस्या को माघी अमावस्या कहा जाता है।  इसे मौनी अमावस्या भी कहा जाता है।
माघी अमावस्या / मौनी अमावस्या का महत्व 
(1) इस दिन मौन रखने का बहुत महत्व माना जाता है।
(2) यह दिन सृष्टि के संचालक मनु का जन्म दिवस भी है।  इस दिन गंगा स्नान और दान दक्षिणा का विशेष महत्व है।  इस दिन, मौन रहकर गंगा स्नान या किसी पवित्र सरोवर में स्नान करना चाहिए।
(3) यदि यह अमावस्या सोमवार के दिन आये तो इस का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। माघ स्नान का सबसे अधिक महत्वपूर्ण दिन अमावस्या ही है।  
(4) माघ अमावस्या को गुरु वृष राशि में हो तथा सूर्य व चन्द्र मकर राशि में हो तब तीर्थराज प्रयाग में कुम्भ महापर्व का योग बनता है। महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार माघ माह की अमावस्या को प्रयागराज में तीन करोड़ दस हजार अन्य तीर्थों का समागम होता है।  
(5) जो नियम पूर्वक उत्तम व्रत पालन करते हुए माघ मॉस  में प्रयाग में स्नान करता है , वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है।
(6) पद्म पुराण के उत्तर खंड में भी माघ मास के माहत्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि  व्रत, दान और तपस्या से भी भगवान् श्री हरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती है , जितनी के माघ मास  में स्नान से होती  है। इसलिए स्वर्ग लाभ, सभी पापों से मुक्ति और भगवान् वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करना चाहिए। 
(7)अमावस्या और पूर्णिमा ये दोनों पर्व तिथियाँ है।  इस दिन पृथ्वी के किसी न किसी भाग में सूर्य या चन्द्रमा का ग्रहण हो ही जाता है।और लोकान्तर में कहीं भी ग्रहण हुआ होगा - इस सम्भावना से धर्म प्राण हिन्दू इस दिन अवश्य दान-पुण्य आदि कर्म करते है।  
पूजा विधि  - माघी अमावस्या को प्रतिदिन के स्नान दान आदि के पश्चात वस्त्राच्छादित वेदी  पर वेद -वेदांग भूषित ब्रह्मा जी का गायत्री सहित पूजन  करे और वस्त्र, छत्र, शय्या आदि का दान देवे व सजातियों सहित भोजन करे।  
अर्घ्योदय - (महाभारत)- माघ कृष्णा अमावस्या को रविवार, व्यतिपात और श्रवण नक्षत्र हो तो 'अर्घ्योदय' योग होता है।  इस  योग में स्कन्द पुराण के अनुसार सभी स्थानों का जल गंगा तुल्य हो जाता है और सभी ब्राह्मण ब्रह्मा संनिभ शुद्धात्मा हो जाते हैं।  अत : इस योग में यत्किंचित किये हुए स्नान-दान आदि का फल मेरु (पर्वत ) समान हो जाता है।  यह अवश्य स्मरण रखना चाहिए कि इस व्रत में जो भी दान दिया जाए उसकी संख्या तीन  हो।
अर्घ्योदय योग के अवसर पर सत्ययुग में वशिष्ठ जी ने, त्रेता में राम चन्द्र जी ने, द्वापर में धर्मराज ने अनेक प्रकार के दान, धर्म किये थे।  अत : धर्मघ्य सत्पुरुषों को अब भी दान पुण्य करते रहना चाहिए।