Anant Chaturdashi / अनंत चतुर्दशी व्रत कब है / Anant Chaturdashi Vrat
When is Anant Chaturdashi /अनंत चतुर्दशी कब है ?
भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है।
इस व्रत के लिए उदय व्यापिनी तिथि ली जाती है। पूर्णिमा का सहयोग होने से इसका फल बढ़ जाता है।यह व्रत (दिवस ) भगवान विष्णु से सम्बन्धित है। व्रती को चाहिए की वह उस दिन प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर 'ममाखिल पाप क्षय पूर्वक शुभ फल वृद्धये श्री मदनंत प्रीति कामनया अनंत व्रतमहं करिष्ये ' ऐसा संकल्प कर के अपने स्थान को स्वच्छ और सुशोभित करे। लकड़ी के पाटे या चौकी पर भगवान अनंत जो भगवान विष्णु के ही रूप हैं , की एक प्रतिमा स्थापित करे। इसके आगे किसी धागे को हल्दी में रंगकर उस धागे के 14 गाठें लगाकर अनंत दोरक रखे। फिर गंध, पुष्प , धूप , दीपक,नैवेध्य आदि से पूजन करे। पूजन में पंचामृत , पंजीरी ,केले ,मोदक आदि का प्रसाद अर्पण करे और उस अनंत दोरक (धागे ) को बांध ले। इस के बाद भगवान अनंत की कथा सुने तथा 14 युग्म ब्राह्मण को भोजन कराये। फिर स्वयं भोजन करे। भोजन में नमक नहीं डाले।
अनंत चतुर्दशी की कथा :-
वनवास के दौरान एक दिन वन में युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से अपना दुःख कहा तथा दुःख के दूर करने का उपाय पूछा। श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा की तुम विधि पूर्वक अनंत भगवान का व्रत करो। इससे तुम्हारा सारा संकट दूर हो जायेगा और तुम्हारा गया हुआ राज्य भी तुम्हे मिल जायेगा। इस सन्दर्भ में उन्होंने युधिष्ठिर को यह कथा सुनाई :-" प्राचीन काल में सुमन्तु नाम के ब्राह्मण के एक कन्या थी जिसका नाम सुशीला था। ब्राह्मण ने उस कन्या का विवाह ऋषि कौडिन्य से कर दिया। कौडिन्य ऋषि सुशीला को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिए। रास्ते में रात हो गयी। वे नदी के तट पर संध्या करने लगे। सुशीला ने देखा - वहाँ बहुत सी स्त्रियाँ सुन्दर वस्त्र धारण करके किसी देवता की पूजा कर रही हैं। सुशीला के पूछने पर उन्होंने विधि पूर्वक अनंत व्रत की महत्ता बता दी। सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान कर 14 गांठों वाला धागा अपने हाथ के बांध लिया और अपने पति के पास वापस आ गयी। कोडिन्य ने सुशीला से धागे के बारे में पूछा तो उसने सारी बात स्पष्ट कर दी। कौडिन्य सुशीला की बात से प्रसन्न नहीं हुए। उन्होंने धागे को तोड़कर आग में जला दिया। यह भगवान अनंत का अपमान था। परिणामस्वरूप कौडिन्य मुनि हर तरह से दुखी रहने लगे। उनकी सारी सम्पति नष्ट हो गयी। इस दरिद्रता का कारण पूछने पर सुशीला ने अनंत भगवान के धागे को जलाने की बात दोहराई। पश्चाताप स्वरुप ऋषि कौडिन्य भगवान अनंत को ढूढ़ने के लिए वन में चले गए। जब वे भटकते हुए निराश होकर गिर पड़े तो भगवान अनंत एक बूढ़े ब्राह्मण के रूप में उनके पास प्रकट होकर बोले, " हे, कौडिन्य तुमने भगवन अनंत का तिरस्कार किया है इस लिए तुम दुखी हुए हो। तुमने पश्चताप कर लिया है इसलिए भगवान तुम पर प्रसन्न हो गए हैं। अब घर जाकर विधि पूर्वक 14 वर्ष तक अनंत चतुर्दशी का व्रत करो। इससे तुम्हारा दुःख दूर हो जायेगा। तुम्हे अनंत सम्पति मिलेगी। कौडिन्य ने वैसा ही किया। इससे उसके सारे दुखों से मुक्ति मिल गयी।
भगवान कृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया जिसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए तथा चिरकाल तक राज्य किया।"
नोट :- अनन्त चतुर्दशी गणेश उत्सव का अंतिम दिवस होता है। इस दिन भगवान गणेश की प्रतिमाओं का विसर्जन भी किया जाता है।