Ghagh ki kahavate / Kavi Ghagh / घाघ कवि / घाघ की कहावतें
* जेकर ऊँचा बैठना, जेकर खेत नीचान।
ओकर बैरी का करै, जेकर मीत दीवान।
अर्थ - जो ऊँचे लोगों के साथ उठता-बैठता हो, जिसका खेत निचान में हो और जिसके साथी बड़े लोग हों तो दुश्मन उसका क्या बिगाड़ सकेगा।
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* बाढ़ै पूत पिता के धर्मा, खेती उपजै अपने कर्मा।
अर्थ - पुत्र पिता के धर्म से बढ़ता है और खेती अपने कर्म (परिश्रम) से होती है।
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* जोइगर बँसगर बुझगर भाइ, तिय सतवन्ती नीक सुहाइ।
धन पुत हो मन होइ विचार, कहैं घाघ ई 'सुक्ख अपार'।।
अर्थ - जिस घर में विवाहित, बलवान और समझदार भाई हो, सुन्दर और सती स्त्री हो। स्वयं पुत्रवान और सद्विचारवान हो तो, उस घर में अपार सुख प्राप्त होता है।
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* निहपछ राजा, मन हो हाथ। साधु परोसी, नीमन साथ।
हुक्मी पूत, धिया सतवार। तिरिया भाई रखे विचार।
कहै घाघ हम करत विचार। बड़े भाग से दे करतार।।
अर्थ - राज्य का राजा न्यायी हो, मन अपने वश में हो, पडोसी सज्जन हो,उत्तम जनों का साथ हो, पुत्र आज्ञा पालक हो, पुत्री सचरित्रा हो, पत्नी और भाई उत्तम विचार के हों, ये सब बड़े भाग्य से मिलते हैं।
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* पूत न मानै आपन डॉँट, भाई लड़ै चहै नित बाँट।
तिरिया कलही करकस होइ, नियरे बसल दुष्ट सब कोइ।
मालिक नाहिंन करै विचार, घाघ कहैं ये विपति अपार।
अर्थ - पुत्र आज्ञा कारी नहीं हो, सगा भाई अपना हिस्सा बाँटने हेतु झगड़ता हो, पत्नी कर्कशा और झगड़ालू हो, पास- पड़ोस में दुष्टजन बसते हों, गृह स्वामी न्याय- अन्याय का विचार न करके कार्य करता हो तो उस घर में विपत्ति का डेरा समझना चाहिए।
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* नसकट खटिया दुलकन घोर, कहैं घाघ यह बिपत क ओर।
अर्थ- सोने के लिए अपनी लम्बाई से छोटी खाट हो और घोडा सीधी चाल न चलने वाला हो तो, जीवन में संकट ही संकट हैं।
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* ओछे बैठक, ओछे काम, ओछी बातें आठों जाम।
घाघ बताये तीन निकाम, भूलि न लीजौ इनको नाम।
. अर्थ - ओछे (हलके /नीच) स्तर के लोगों के साथ उठना - बैठना, ओछे कार्य करना, और हमेशा ओछी बातें करना। घाघ कवि के अनुसार ये तीनों ठीक नहीं हैं, इनको नहीं करना चाहिए।
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* एक तो बसो सड़क पर गाँव, दूजे बड़े बड़ेन में नाँव।
तीजे परे दरब से हीन, घग्घा हको विपता तीन।
अर्थ - घाघ के अनुसार सड़क पर का निवास, बड़े लोगों का साथ और धनहीनता - तीनों विपत्ति के कारण हैं।
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* खेती पाती बीनती औ घोड़े की तंग।
अपने आप संवारिए लाख लोग हो संग।
अर्थ - घाघ कवि कहते हैं कि खेती का संचालन, पत्र लिखना, विनती करना तथा सवारी वाले घोड़े की सेवा- ये सभी काम अपने हाथों ही करने चाहिए तभी इनमें सफलता मिलती है।
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ओकर बैरी का करै, जेकर मीत दीवान।
अर्थ - जो ऊँचे लोगों के साथ उठता-बैठता हो, जिसका खेत निचान में हो और जिसके साथी बड़े लोग हों तो दुश्मन उसका क्या बिगाड़ सकेगा।
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* बाढ़ै पूत पिता के धर्मा, खेती उपजै अपने कर्मा।
अर्थ - पुत्र पिता के धर्म से बढ़ता है और खेती अपने कर्म (परिश्रम) से होती है।
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* जोइगर बँसगर बुझगर भाइ, तिय सतवन्ती नीक सुहाइ।
धन पुत हो मन होइ विचार, कहैं घाघ ई 'सुक्ख अपार'।।
अर्थ - जिस घर में विवाहित, बलवान और समझदार भाई हो, सुन्दर और सती स्त्री हो। स्वयं पुत्रवान और सद्विचारवान हो तो, उस घर में अपार सुख प्राप्त होता है।
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* निहपछ राजा, मन हो हाथ। साधु परोसी, नीमन साथ।
हुक्मी पूत, धिया सतवार। तिरिया भाई रखे विचार।
कहै घाघ हम करत विचार। बड़े भाग से दे करतार।।
अर्थ - राज्य का राजा न्यायी हो, मन अपने वश में हो, पडोसी सज्जन हो,उत्तम जनों का साथ हो, पुत्र आज्ञा पालक हो, पुत्री सचरित्रा हो, पत्नी और भाई उत्तम विचार के हों, ये सब बड़े भाग्य से मिलते हैं।
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* पूत न मानै आपन डॉँट, भाई लड़ै चहै नित बाँट।
तिरिया कलही करकस होइ, नियरे बसल दुष्ट सब कोइ।
मालिक नाहिंन करै विचार, घाघ कहैं ये विपति अपार।
अर्थ - पुत्र आज्ञा कारी नहीं हो, सगा भाई अपना हिस्सा बाँटने हेतु झगड़ता हो, पत्नी कर्कशा और झगड़ालू हो, पास- पड़ोस में दुष्टजन बसते हों, गृह स्वामी न्याय- अन्याय का विचार न करके कार्य करता हो तो उस घर में विपत्ति का डेरा समझना चाहिए।
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* नसकट खटिया दुलकन घोर, कहैं घाघ यह बिपत क ओर।
अर्थ- सोने के लिए अपनी लम्बाई से छोटी खाट हो और घोडा सीधी चाल न चलने वाला हो तो, जीवन में संकट ही संकट हैं।
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* ओछे बैठक, ओछे काम, ओछी बातें आठों जाम।
घाघ बताये तीन निकाम, भूलि न लीजौ इनको नाम।
. अर्थ - ओछे (हलके /नीच) स्तर के लोगों के साथ उठना - बैठना, ओछे कार्य करना, और हमेशा ओछी बातें करना। घाघ कवि के अनुसार ये तीनों ठीक नहीं हैं, इनको नहीं करना चाहिए।
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* एक तो बसो सड़क पर गाँव, दूजे बड़े बड़ेन में नाँव।
तीजे परे दरब से हीन, घग्घा हको विपता तीन।
अर्थ - घाघ के अनुसार सड़क पर का निवास, बड़े लोगों का साथ और धनहीनता - तीनों विपत्ति के कारण हैं।
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* खेती पाती बीनती औ घोड़े की तंग।
अपने आप संवारिए लाख लोग हो संग।
अर्थ - घाघ कवि कहते हैं कि खेती का संचालन, पत्र लिखना, विनती करना तथा सवारी वाले घोड़े की सेवा- ये सभी काम अपने हाथों ही करने चाहिए तभी इनमें सफलता मिलती है।
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