Guru Purnima / Vyas Poornima / Importance of Guru Purnima / गुरु पूर्णिमा / व्यास पूर्णिमा / गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु तथा गुरु पूर्णिमा का महत्व -भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिक गुरु को बहुत महत्त्व व सम्मान दिया जाता रहा है। प्राचीन काल में शिक्षा प्राप्ति के साधन व स्थान सीमित थे। उस समय विद्यार्थी गुरुकुल में जाकर जीवनोपयोगी शिक्षा प्राप्त करते थे तथा गुरु भी अपने विद्यार्थियों को श्रेष्ठ शिक्षा करते थे। निम्नांकित श्लोक व दोहा बताते हैं कि गुरु को श्रेष्ठ स्थान प्राप्त था -
1 गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु , गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरुर्साक्षात परब्रह्म , तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
2 गुरु गोविन्द दोऊ खड़े , काकै लागूँ पाय।
बलिहारी गुरु आपकी , गोविन्द दियो बताये।।
गुरु पूर्णिमा के बारे में महत्वपूर्ण बातें :-
(१ ) गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा प्रति वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को आयोजित की जाती है।
(२) इस दिन शिष्य गण अपने - अपने गुरु के पास जाते हैं , उन्हें कुछ भेंट करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
(१ ) गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा प्रति वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को आयोजित की जाती है।
(२) इस दिन शिष्य गण अपने - अपने गुरु के पास जाते हैं , उन्हें कुछ भेंट करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
(३) ऐसा विश्वास है कि महर्षि वेद व्यास , जिन्होंने कई ग्रंथों की रचना की थी , का जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था। उनके जन्म दिवस की स्मृति में इस तिथि को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
(४) चतुर्मास की अवधि भी इसी दिन शुरू होती है। पुरातन समय में सन्यासी अपने शिष्यों के साथ भ्रमण करते थे और आध्यात्मिक व धार्मिक प्रवचन देते थे। वे चार माह की अवधि में , जिसे चतुर्मास कहा जाता है, किसी एक स्थान पर रुकते थे।
(५) गौतम बुद्ध ने इस दिन सारनाथ में अपना प्रथम प्रवचन दिया था। इसकी स्मृति में बुद्ध धर्म के अनुयायी गुरु पूर्णिमा मनाते हैं।