Friday 23 September 2016

(8.1.4) Kokila Vrat (in Hindi / Kokila Vrat vidhi /कोकिला व्रत

Kokila Vrat / Kokila Vrat Kab Hai ? Kokila Vrat Vidhi / Kokila Vrat ka Mahatva / कोकिला व्रत / कोकिला व्रत विधि / कोकिला व्रत का महत्व 

कोकिला व्रत कब किया जाता है ? 
यह व्रत आषाढ़ माह की पूर्णिमा से प्रारम्भ करके श्रावण माह की पूर्णिमा तक किया जाता है। ( इस वर्ष की दिनांक व दिन जानने के लिए यहां क्लिक करें )
कोकिला व्रत की विधि - 
पीठी के द्वारा निर्मित की हुई कोयल की  प्रतिमा का प्रतिदिन पूजन किया जाता है।श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन  मिट्टी की बनाईं हुयी कोयल की प्रतिमा को पुरोहित अथवा कथा वाचक को भेंट करने से व्रत करने वाली स्त्री इस जन्म में प्रीति पूर्वक पोषण करने वाले पति के साथ सुख सौभाग्य आदि भोग कर अन्त में गौरी (पार्वती) की पुरी में जातीं है। (विस्तृत जानकारी हेतु यहाँ क्लिक करें ) 
विशेष  - इस व्रत में गौरी का कोकिला के रुप में पूजां किया जाता है। 
कोकिला व्रत का महत्व - अविवाहित लड़कियों द्वारा इस व्रत को करने से उपयुक्त वर मिलता है और सुखमय वैवाहिक जीवन व्यतीत होता है। विवाहित महिलाओँ द्वारा इस व्रत को करने से सौभाग्य , सुपुत्र तथा वैभव प्राप्त होता है ।  (विस्तृत जानकारी हेतु क्लिक करें) 
कोकिला व्रत कथा - दक्ष प्रजापति की पुत्री सती  का विवाह  भगवान् शिव के साथ हुआ था। बाद में दक्ष प्रजापति द्वारा किये गए यज्ञ के आयोजन में उन्होंने अपने जँवाई भगवान् शिव को निमंत्रित नहीं किया। भगवान् शिव ने सती को वहाँ जाने से मना परंतु सती ने बिना निमन्त्रण के भी अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने का निश्चय किया। 
जब सती अपने पिता के घर पहुँची तो किसी ने भी उसका स्वागत नहीं किया।  इस अपमान से दुःखी होकर उसने अपने आप को अग्नि में भस्म कर लिया। भगवान् शिव इस घटना को सुनकर वहाँ पहुँचे।  दक्ष के सिर  को उसकी धड़ से अलग कर दिया।  बिना अनुमति के सती के वहाँ जाने के कारण भगवान् शिव ने उसे दस हजार वर्ष तक कोकिला बनी हुई वन में घूमती रहने का शाप दिया।  दस हजार वर्ष बाद सती  ने पार्वती के रूप में जन्म लिया । 
ऋषियों की सलाह पर उसने यह एक माह का व्रत किया तथा पूजा की। शिव जी ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर उससे विवाह किया।  इस लिए इस व्रत का नाम 'कोकिला व्रत' हुआ। 
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