Navratri vrat / Navratra Vrat / Navratri Vrat Vidhi / नवरात्रि व्रत/ नवरात्र व्रत विधि / नवरात्र व्रत का फल (हिंदी में )
नवरात्र व्रत
हिन्दू धर्म के अनुसार नव रात्र की नौ दिन की अवधि बहुत ही शुभ और पवित्र मानी जाती है। एक वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं - चैत्र व आश्विन तथा आषाढ़ व माघ। इन चार में से प्रथम दो को प्रकट नवरात्र और शेष दो को गुप्त नवरात्र के रूप में जाना जाता है। परन्तु चैत्र और आश्विन के नवरात्र ही मुख्य माने जाते हैं। नवरात्र प्रतिपदा से नवमी पर्यन्त होते हैं।
नवरात्र व्रत विधि तथा नवरात्र व्रत की मुख्य बातें :-
(१) प्रतिपदा से नवमी पर्यन्त नवरात्रियों तक व्रत करने से 'नवरात्र ' व्रत पूर्ण होते हैं , तिथि के घटने या बढ़ने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
(२) वैसे तो चैत्र (वासंती ) नवरात्रों में विष्णु की और आश्विन (शारदीय ) नवरात्रों में शक्ति की उपासना का प्राधान्य है परन्तु ये दोंनों ही बहुत व्यापक हैं, अतः दोनों में दोनों की उपासना होती है।
(३) यदि कोई व्यक्ति नवरात्र पर्यन्त अर्थात प्रतिपदा से नवमी तक व्रत नहीं रख सके तो वह प्रतिपदा के सप्तमी तक 'सप्तरात्र' या पंचमी से नवमी तक 'पञ्चरात्र' या सप्तमी,अष्टमी , नवमी तक 'त्रिरात्र' या प्रतिपदा व नवमी ,दो व्रतों से 'युग्म रात्र' या प्रतिपदा अथवा नवमी के एक व्रत से 'एकरात्र' के रूप में, जो भी किये जाएँ , उन्हीं से अभीष्ट की सिद्धि होती है।
(४) नवरात्र व्रत प्रारम्भ करते समय सर्व प्रथम गणपति , मातृका , लोकपाल , नवग्रह और वरुण का पूजन , स्वस्ति वाचन और मधुपर्क ग्रहण करके प्रधान मूर्ति की - जो राम, कृष्ण,लक्ष्मी ,शक्ति,भगवती, देवी आदि किसी भीअभीष्ट देव की हो,पूजा करें।
(५) कुमारी पूजन - देवी व्रतों में कुमारी पूजन आवश्यक माना गया है। यदि सामर्थ्य हो तो नवरात्र पर्यन्त और न हो तो कुमारी के चरण धोकर उसकी गंध-पुष्प आदि से पूजा करके मिष्टान्न भोजन कराना चाहिये।
नवरात्र व्रत का फल - नवरात्र की नौ दिन की अवधि को आध्यात्मिक और नैतिक उन्नति की अवधि माना जाता है। नवरात्र व्रत, व्रती की आकांक्षाओं की पूर्ति करता है तथा इससे उसके कष्ट दूर होते हैं, और मानसिक बल और आत्म बल बढता है।
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नवरात्र व्रत
हिन्दू धर्म के अनुसार नव रात्र की नौ दिन की अवधि बहुत ही शुभ और पवित्र मानी जाती है। एक वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं - चैत्र व आश्विन तथा आषाढ़ व माघ। इन चार में से प्रथम दो को प्रकट नवरात्र और शेष दो को गुप्त नवरात्र के रूप में जाना जाता है। परन्तु चैत्र और आश्विन के नवरात्र ही मुख्य माने जाते हैं। नवरात्र प्रतिपदा से नवमी पर्यन्त होते हैं।