Thursday 22 September 2016

(8.1.3) Jagannath Rath Yatra /जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा

Rath Yatra / Jagannath Puri Rath Yatra (in Hindi) / जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 

रथ यात्रा उत्सव आषाढ़ शुक्ल द्वितीय को आयोजित किया जाता है।  यह उत्सव मुख्य रूप से पुरी में आयोजित किया जाता है। इस रथ यात्रा उत्सव के बारे में महत्वपूर्ण बातें निम्नानुसार हैं - (For English translation click here)  
1. भारत के उड़ीसा प्रान्त में समुद्र के किनारे भगवान जगन्नाथ का मंदिर है। भगवान जगन्नाथ को हिन्दुओं  के प्रमुख देवता के रूप में माना जाता है। पुरी के इस भव्य मंदिर में तीन प्रतिमाएं हैं।ये प्रतिमाएं भगवान जगन्नाथ , उनके भाई बलभद्र व उनकी बहिन सुभद्रा की हैं। ये सभी प्रतिमाएं लकड़ी की बनी हुई हैं। माना जाता है कि इन प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा महाराज इंद्र द्युम्न ने की थी।
2. भगवान जगन्नाथ का रथोत्सव आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। इस दिन उड़ीसा के पुरी  नामक स्थान पर यह बड़ी धूमधाम और श्रद्धा से मनाया जाता है। उस दिन भगवान जगन्नाथ  ,सुभद्रा जी व बलभद्र जी की प्रतिमाओं  को विशाल रथ पर आरूढ़ करके समस्त नगरी के प्रमुख मार्गों पर भ्रमण करते हैं।
3. भगवान  के रथ को पशु नहीं अपितु श्रद्धालु जन खींचते हैं ,जो हज़ारों की संख्या में होते हैं।
4. प्रतिवर्ष नया रथ निर्मित किया जाता है।
5. रथ यात्रा ,भगवान  जगन्नाथ की गुंडीचा माता मंदिर के वार्षिक भ्रमण के रूप में आयोजित की जाती है। इसलिए  इसे गुण्डीच यात्रा भी कहा जाता है।
6.  इस रथ यात्रा के लिए तीन रथ बनाये जाते हैं। ये रथ बलभद्र ,भगवान जगन्नाथ और सुभद्रा के लिए होते हैं।
7. रथ यात्रा में सबसे आगे बलभद्र जी का रथ रहता है , बीच में सुभद्रा जी का ,और सबसे पीछे भगवान  जगन्नाथ जी का रथ रहता है।
8. बलभद्र जी के रथ का रंग लाल तथा हरा होता है ,सुभद्रा जी के रथ का रंग लाल तथा नीला होता है, भगवान  जगन्नाथ जी के रथ का रंग लाल तथा पीला होता है।
9. बलभद्र जी के रथ को पाल ध्वज ,सुभद्रा जी के रथ को दर्पदलन या देवी रथ तथा जगन्नाथ जी के रथ को नंदी घोष कहा जाता है।
10. यह रथ यात्रा प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ होती है और भक्तगण इन रथों को खीचते हुए गुंडीचा मंदिर तक ले जाते हैं, जहाँ ये रथ सात दिन तक रुकते हैं।
11. आषाढ़ शुक्ल दशमी को मुख्य मंदिर के लिए वापसी यात्रा प्रारम्भ होती है, जिसे 'बहुदा यात्रा' कहा जाता है।
12. रथों को मुख्य मंदिर के पास लाकर प्रतिमाओं को एक दिन रथ में ही रखा जाता है तथा आषाढ़ शुक्ल एकादशी को मंदिर में रखा जाता है।  इसके साथ ही भगवान  जगन्नाथ की दस दिवसीय यात्रा समाप्त होती है।
(For English translation click here)